चीन ने एक हाइपरसोनिक विमान का डिज़ाइन पेश किया है. उनका कहना है कि यह एक बहुत बड़ा कदम है. इसकी तेज़ रफ़्तार को लेकर कोई शक़ नहीं है और ऐसा ...

चीन ने एक हाइपरसोनिक विमान का डिज़ाइन पेश किया है. उनका कहना है कि यह एक बहुत बड़ा कदम है.

इसकी तेज़ रफ़्तार को लेकर कोई शक़ नहीं है और ऐसा मुमकिन है कि बीजिंग से नई दिल्ली तक का सफ़र उतना ही रह जाएगा, जितना दिल्ली से देहरादून.

हाइपरसोनिक उड़ानों को लेकर शोध कोई नई बात नहीं है, लेकिन आमतौर पर इसके केंद्र में सैन्य प्रयोग ही रहते हैं क्योंकि वहां पर शोध के लिए अधिक पैसा होता है और दबाव कम होता है.
यात्री उड़ानों के लिए क्या कोई विमान ध्वनि की गति से पांच गुना तेज़ उड़ सकता है और दो घंटे में प्रशांत महासागर का चक्कर काट कर आ सकता है?
तेज़, उससे तेज़ और सबसे तेज़

सुपरसोनिक विमानों की रफ़्तार मापने का पैमाना अमूमन ध्वनि की गति या मैक वन रखा जाता है. ये तकरीबन 1235 किलोमीटर प्रति घंटा है.
सबसोनिक - वो रफ़्तार जो ध्वनि की गति से कम हो जैसे यात्री विमानों की स्पीड.
सुपरसोनिक - मैक वन से तेज़ और मैक फ़ाइव तक (ध्वनि की स्पीड से पांच गुना ज़्यादा) जैसे कॉनकॉर्ड विमान यूरोप और अमरीका के बीच 1976 से 2003 तक उड़ान भरता रहा.
हाइपरसोनिक - वो रफ़्तार जो मैक फ़ाइव से ज़्यादा तेज़ हो. इस समय कुछ गाड़ियों पर इसके प्रयोग चल रहे हैं.
चीन इस समय ऐसे ही हाइपरसोनिक विमान पर फ़ोकस कर रहा है. चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ की एक टीम इस पर काम कर रही है.
रिसर्च टीम के पास इस समय दो चुनौतियां हैं. पहली इसकी एयरोडायनमिक्स और दूसरा इसका इंजन. इंजन वो चुनौती है जिसे सुलझाना बड़ी बाधा है.
हाइपरसोनिक फ़्लाइट

डिजाइन के लिहाज से हाइपरसोनिक फ़्लाइट को कुछ ऐसी चीज़ की ज़रूरत है जिससे उसकी राह में अवरोध कम किया जा सके.
विमान जितनी तेज़ रफ़्तार वाला होगा, अवरोध उतना बड़ा मुद्दा होगा.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबर्न के निकोलस हचिंस कहते हैं, "रफ़्तार जितनी गुना बढ़ती है, अवरोध उसी अनुपात में बढ़ता है. अगर आप स्पीड दोगुनी बढ़ाएंगे तो अवरोध चार गुनी बढ़ जाएगी."
लेकिन सवाल उठता है कि चीन ने जो डिजाइन पेश किया है, उसमें नया क्या है? दरअसल चीन ने अपने डिजाइन में डैनों की एक अतिरिक्त लेयर जोड़ा है. ये डैने सामान्य तौर पर लगने वाले डैनों के ऊपर लगाए गए हैं. इसका मक़सद अवरोध को कम करना है. दिखने में ये कुछ-कुछ दो पंखों वाले विमान जैसा लगता है.
चुनौतियां फिर भी बरकरार

इस समय चीन ने अपने मॉडल का छोटे पैमाने पर प्रयोग किया है. इसकी टेस्टिंग एक विंड टनेल में की गई है.
इसलिए चीन के इस सपने को हकीकत की ज़मीन पर उतरने में फिलहाल वक्त लगेगा.
जानकारों का कहना है कि भले ही चीन अपने डिजाइन में अवरोध की बाधा पार कर ले लेकिन दूसरी चुनौतियां फिर भी बरकरार रहेंगी.
ध्वनि की रफ़्तार

उदाहरण के लिए गर्मी से बचाव इन्हीं चुनौतियों में से एक है.
एक मुद्दा इससे पैदा होने वाले जबर्दस्त आवाज़ का भी है जिसके बारे में अभी तक विचार नहीं किया गया है.
अगर कोई विमान ध्वनि की रफ़्तार पार कर लेता है तो इससे शॉकवेव्स पैदा होती है.
सीधे लफ़्जों में कहें तो हाइपरसोनिक विमान बहुत तेज़ आवाज़ पैदा करेगा और वो इतनी ताकतवर होगी जिससे कांच टूट सकता है.
भविष्य के हाइपरसोनिक विमानों के लिए इंजन का सवाल ज़्यादा जटिल है.
पारपंरिक जेट इंजन

जैसे ही एक विमान मैक फ़ाइव की रफ़्तार को पा लेता है, इसे स्क्रैमजेट इंजन से चलाया जा सकता है.
स्क्रैमजेट इंजन एक ऐसा जेट इंजन है जो सफ़र में हवा सोखता है और इसका इस्तेमाल ईंधन के दहन में करता है.
लेकिन इसमें एक बड़ी चुनौती है, ऐसे इंजन केवल मैक फ़ाइव से ऊपर की स्पीड पर ही चलाया जा सकता है.
इसका मतलब ये हुआ कि विमान को एक और इंजन की ज़रूरत होगी जिससे इसे मैक फ़ाइव की रफ़्तार तक ले जाया जा सके.
जानकार बताते हैं कि ये एक बेहद ताकतवर और पारपंरिक जेट इंजन हो सकता है और आख़िरकार दोनों इंजनों के कॉम्बिनेशन की ज़रूरत होगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वींसलैंड में हाइपरसोनिक स्टडीज के प्रोफ़ेसर माइकल स्मार्ट कहते हैं, "चीन में इस इंजन को तैयार करने की दिशा में पिछले कुछ सालों से एक बड़े प्रोग्राम पर काम चल रहा है. अगर वे कामयाब रहे तो ये बड़ी उपलब्धि होगी."
फ़ायदे का सौदा या नहीं

तकनीकी दक्षता और संभावित कामयाबी को किनारे रख कर देखें तो सवाल ये उठता है कि क्या हाइपरसोनिक विमान कारोबार के लिहाज से फ़ायदे का सौदा रहेंगे.
कॉनकॉर्ड विमान की डिजाइन को देखें तो आपके मन में सवाल पैदा होंगे.
1969 में जब कॉनकॉर्ड ने पहली उड़ान भरी थी तो इसे विमानन उद्योग का भविष्य कहा गया था.
लेकिन इसका निर्माण बहुत कम किया गया और आख़िरकार साल 2003 में इसे हटा लिया गया. इसके उत्तराधिकारी के बारे में भी कोई बात नहीं कही गई.
पहली बात तो ये थी कि इसकी फ़्लाइट यात्रियों के लिए बहुत महंगी थी.
और तेज़ आवाज़ का मुद्दा भी हमें नहीं भूलना चाहिए. कॉनकॉर्ड को केवल समुद्र के ऊपर ध्वनि की रफ़्तार से तेज़ उड़ने की इजाज़त दी गई थी.
ये रोक पूरे अटलांटिक के इलाके के लिए थी और इस वजह से इसकी कारोबारी संभावना पर असर पड़ा था.
हाल के सालों में सुपरसोनिक विमानों के निर्माण की दिशा में कंपनियों की दिलचस्पी बढ़ी है, लेकिन अभी ये सभी निर्माण के स्तर पर हैं.
15 से 20 साल और

हाइपरसोनिक फ़्लाइट्स की राह में अभी और भी बड़ी चुनौतियां हैं. ये बहुत ज़्यादा महंगी हो सकती हैं और तेज़ आवाज़ की समस्या तो है ही.
हाइपरसोनिक विमान के चीनी डिजाइन के बारे में फीजिक्स, मेकानिक्स और एस्ट्रोनॉमी के फरवरी अंक में रिसर्च पेपर छपा था.
इसमें ये उम्मीद की गई है कि आने वाले समय में हाइपरसोनिक विमान ज़्यादा आसान और प्रभावशाली होंगे.
हालांकि फ़्लाइट ग्लोबल के एलिस टेलर कहते हैं, "कारोबारी लिहाज से इनके हकीकत में बदलने में अभी 15 से 20 साल और लगेंगे. इस समय इसके लिए कोई बाज़ार नहीं है. ऐतिहासिक रूप से हवाई सफ़र का किराया नीचे ही गिरा है और हाइपरसोनिक फ़्लाइट के लिए सवारी खोजना मुश्किल काम होगा."
सैन्य प्रतिस्पर्धा

चीन की मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि हाइपरसोनिक विमान परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक सैनिक परियोजनाओं से भी जुड़े हैं.
इस हाइपरसोनिक महत्वाकांक्षा के केंद्र में चीन के सैनिक इरादे भी शामिल हैं.
हम हवाई निगरानी के उस पहलू के बारे में सोच सकते हैं जिसमें ऐसे हाइपरसोनिक विमानों को फौरन तैनात किया जा सके और जिसे इंटरसेप्ट किया जाना बहुत मुश्किल होगा.
माना जा रहा है कि हाइपरसोनिक विमानों की दिशा में किए जा रहे रिसर्च हाइपरसोनिक मिसाइलों की तरफ़ बढ़ेंगे.
इस मैदान में अमरीका, चीन और कुछ हद तक रूस भी एक खिलाड़ी हैं.
इसमें एक बात और है कि मिलिट्री रिसर्च इस कदर गुप्त रखे जाते हैं कि ये मुश्किल होगा कि इस मोर्चे पर किसे बढ़त हासिल है.
प्रोफ़ेसर स्मार्ट कहते हैं कि ऐतिहासिक रूप से अमरीका हमेशा आगे रहा है लेकिन चीन भी इस दिशा में अपनी रफ्तार पकड़ रहा है.
Source-bbc
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