नाभिकीय संलयन जब दो अथवा अधिक हल्के नाभिक अति उच्च चाल से गति करते हुए परस्पर संयुक्त होकर एक नाभिक बनाते है तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलय...
नाभिकीय संलयन
जब दो अथवा अधिक हल्के नाभिक अति उच्च चाल से गति करते हुए परस्पर संयुक्त होकर एक नाभिक बनाते है तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।

नाभिकीय संलयन से प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान, संलयन करने वाले मूल नाभिको के द्रव्यमानो के योग से कम होता है तथा द्रव्यमान की यह क्षति ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जाती है।
भारी हाइड्रोजन के नाभिको के संलयन से प्राप्त ऊर्जा, उतने ही द्रव्यमान के U235 के विखंडन से प्राप्त ऊर्जा से कही अधिक होती है।
सौर ऊर्जा तथा इसका स्रोत
सूर्य से लगातार प्रकाश व ऊष्मा के रूप में अति उच्च दर से ऊर्जा का उत्सर्जन कर रहा है। ज्योतिष व भूगर्भ सम्बन्धी गणनाओ के आधार पर यह पता चला है कि सूर्य द्वारा यह उत्सर्जन करोड़ो वर्षो से हो रहा है। रासायनिक अभिक्रियाओ से इतनी ऊर्जा का उत्सर्जन संभव नहीं है क्योंकि यदि सूर्य किसी बाह्रा पदार्थ (जैसे कार्बन) से बना होता तो भी इसके पूर्ण दहन से इतनी बड़ी दर पर ऊर्जा केवल कुछ हज़ार वर्षो तक ही मिल पाती।
इस स्थिति में सूर्य बहुत समय पहले ही जल चुका होता। सूर्य की इस असीमित ऊर्जा के सम्बन्ध में वैज्ञानिको ने विभिन्न मत दिए है। सूर्य में भारी तत्वों के नाभिको का प्राक्रतिक रेडियोएक्टिव विघटन अथवा विखंडन भी सूर्य की ऊर्जा का स्त्रोत नहीं हो सकता क्योंकि सूर्य में इन तत्वों की उपस्थिति इतनी अल्प मात्रा में है की इनसे इतनी बड़ी दर से ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं हो सकता।
वास्तव में सूर्य की अपार ऊर्जा का स्त्रोत हल्के नाभिको का संलयन है। सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 90% अंश हाइड्रोजन तथा हीलियम है; शेष 10% अब्स्ग ने अबता तत्व गौ हुब्ने से अधिकांश हलके तत्व है। सूर्य के बाह्य पृष्ठ का अनुमानित ताप 6900 K है तथा इसके भीतरी भाग का ताप लगभग 2 x 107 K है।
प्रोटॉन – प्रोटॉन साइकिल
नये नाभिकीय आकड़ो के आधार पर अब यह विश्वास किया जाता है की सूर्य में कार्बन – साइकिल की अपेक्षा एक अन्य साइकिल की अधिक सम्भावना है जिसे प्रोटॉन – प्रोटॉन साइकिल कहते है। इस साइकिल में भी कई अभिक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक का निर्माण करते है।
तारो में भी ऊर्जा का स्त्रोत वही है जो सूर्य में है। सूर्य के भीतरी भाग में जहाँ ताप 2 x 107 K है, प्रोटॉन – प्रोटॉन साइकिल की अधिक सम्भावना है। परन्तु अनेक तारो में जिनका ताप सूर्य के ताप से ऊँचा है; जैसे साइरियस में, कार्बन – साइकिल की अधिक सम्भावना है। सूर्य लगभग 4 x 109 किलोग्राम/सेकंड की दर से कम हो रहा है। इस प्रकार, सूर्य तीव्र गति से नष्ट हो रहा है। परन्तु नष्ट होने वाला द्रव्यमान से, जो लगभग 2 x 1030 किग्रा है, अब भी काफी कम है। सूर्य अभी अगले एक हज़ार करोड़ (1011) वर्षो तक अपनी वर्तमान दर से ऊर्जा का उत्सर्जन करता रहेगा।
जब दो अथवा अधिक हल्के नाभिक अति उच्च चाल से गति करते हुए परस्पर संयुक्त होकर एक नाभिक बनाते है तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।

नाभिकीय संलयन से प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान, संलयन करने वाले मूल नाभिको के द्रव्यमानो के योग से कम होता है तथा द्रव्यमान की यह क्षति ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जाती है।
भारी हाइड्रोजन के नाभिको के संलयन से प्राप्त ऊर्जा, उतने ही द्रव्यमान के U235 के विखंडन से प्राप्त ऊर्जा से कही अधिक होती है।
सौर ऊर्जा तथा इसका स्रोत
सूर्य से लगातार प्रकाश व ऊष्मा के रूप में अति उच्च दर से ऊर्जा का उत्सर्जन कर रहा है। ज्योतिष व भूगर्भ सम्बन्धी गणनाओ के आधार पर यह पता चला है कि सूर्य द्वारा यह उत्सर्जन करोड़ो वर्षो से हो रहा है। रासायनिक अभिक्रियाओ से इतनी ऊर्जा का उत्सर्जन संभव नहीं है क्योंकि यदि सूर्य किसी बाह्रा पदार्थ (जैसे कार्बन) से बना होता तो भी इसके पूर्ण दहन से इतनी बड़ी दर पर ऊर्जा केवल कुछ हज़ार वर्षो तक ही मिल पाती।
इस स्थिति में सूर्य बहुत समय पहले ही जल चुका होता। सूर्य की इस असीमित ऊर्जा के सम्बन्ध में वैज्ञानिको ने विभिन्न मत दिए है। सूर्य में भारी तत्वों के नाभिको का प्राक्रतिक रेडियोएक्टिव विघटन अथवा विखंडन भी सूर्य की ऊर्जा का स्त्रोत नहीं हो सकता क्योंकि सूर्य में इन तत्वों की उपस्थिति इतनी अल्प मात्रा में है की इनसे इतनी बड़ी दर से ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं हो सकता।
वास्तव में सूर्य की अपार ऊर्जा का स्त्रोत हल्के नाभिको का संलयन है। सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 90% अंश हाइड्रोजन तथा हीलियम है; शेष 10% अब्स्ग ने अबता तत्व गौ हुब्ने से अधिकांश हलके तत्व है। सूर्य के बाह्य पृष्ठ का अनुमानित ताप 6900 K है तथा इसके भीतरी भाग का ताप लगभग 2 x 107 K है।
प्रोटॉन – प्रोटॉन साइकिल
नये नाभिकीय आकड़ो के आधार पर अब यह विश्वास किया जाता है की सूर्य में कार्बन – साइकिल की अपेक्षा एक अन्य साइकिल की अधिक सम्भावना है जिसे प्रोटॉन – प्रोटॉन साइकिल कहते है। इस साइकिल में भी कई अभिक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक का निर्माण करते है।
तारो में भी ऊर्जा का स्त्रोत वही है जो सूर्य में है। सूर्य के भीतरी भाग में जहाँ ताप 2 x 107 K है, प्रोटॉन – प्रोटॉन साइकिल की अधिक सम्भावना है। परन्तु अनेक तारो में जिनका ताप सूर्य के ताप से ऊँचा है; जैसे साइरियस में, कार्बन – साइकिल की अधिक सम्भावना है। सूर्य लगभग 4 x 109 किलोग्राम/सेकंड की दर से कम हो रहा है। इस प्रकार, सूर्य तीव्र गति से नष्ट हो रहा है। परन्तु नष्ट होने वाला द्रव्यमान से, जो लगभग 2 x 1030 किग्रा है, अब भी काफी कम है। सूर्य अभी अगले एक हज़ार करोड़ (1011) वर्षो तक अपनी वर्तमान दर से ऊर्जा का उत्सर्जन करता रहेगा।
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