क़िस्से-कहानियों में शेर बोलता है , साँप बोलता है। ऊँट बातें करता है , गाय शिकायत करती है। जातक-पंचतन्त्र-ईसप किसी को उठा लीजिए , वहाँ जानवरो...
क़िस्से-कहानियों में शेर बोलता है , साँप बोलता है। ऊँट बातें करता है , गाय शिकायत करती है। जातक-पंचतन्त्र-ईसप किसी को उठा लीजिए , वहाँ जानवरों की बतकहियाँ हैं। लोग बचपन में उन्हें पढ़ते हैं और ज़िन्दगी भर कभी बड़े नहीं हो पाते।

जानवर नहीं बोल सकते , यह एक सत्य है ( कुछ अल्पविकसित अपवादों पर बात बाद में )। भाषा का उपहार विकसित रूप में केवल मनुष्य के पास है। मानव कैसे बोल सकता है और अन्य प्राणी नहीं , यह जानना कथा-जगत् से बाहर निकलने के लिए ज़रूरी है।
वाणी दरअसल गले में नहीं पैदा होती , वह मस्तिष्क में बनती है। कण्ठ का स्वरयन्त्र तो मस्तिष्क की आज्ञा का पालन करता है। मस्तिष्क के उन ख़ास हिस्सों पर बात करनी ज़रूरी है , जो मनुष्य में हैं लेकिन बाघ या घोड़े में विकसित नहीं।
आवाज़ निकालना भाषा नहीं है। भाषा केवल स्वर का उच्चार नहीं है। भाषा में चिन्तन सन्निहित है , भाषा में विचार पिनद्ध। भाषा वाहिका है , जिसका वह वहन करती है , वह केवल मनुष्य रखता है।
फ़िल्म में निरूपा राय चीखती हैं , आवाज़ चली जाती है। यह विज्ञान की इस देश में उस समय की शोचनीय स्थिति बताता है। नाटकीयता किस तरह हमारे मन पर हावी है। कैसे हम पाँच साल के बच्चे से बेहतर नहीं सोच पाते , बढ़ते-बढ़ते जाते जिस्मों के बावजूद।
अगली कुछ पोस्टें भाषा पर। उसकी उत्पत्ति पर। उसकी निःसरण पर। वह कहाँ बनकर कैसे निकलती है। क्यों लोग बोल नहीं पाते , कैसे भाषा के विकार जन्मते हैं।
साभार- डॉ स्कंद शुक्ल।

जानवर नहीं बोल सकते , यह एक सत्य है ( कुछ अल्पविकसित अपवादों पर बात बाद में )। भाषा का उपहार विकसित रूप में केवल मनुष्य के पास है। मानव कैसे बोल सकता है और अन्य प्राणी नहीं , यह जानना कथा-जगत् से बाहर निकलने के लिए ज़रूरी है।
वाणी दरअसल गले में नहीं पैदा होती , वह मस्तिष्क में बनती है। कण्ठ का स्वरयन्त्र तो मस्तिष्क की आज्ञा का पालन करता है। मस्तिष्क के उन ख़ास हिस्सों पर बात करनी ज़रूरी है , जो मनुष्य में हैं लेकिन बाघ या घोड़े में विकसित नहीं।
आवाज़ निकालना भाषा नहीं है। भाषा केवल स्वर का उच्चार नहीं है। भाषा में चिन्तन सन्निहित है , भाषा में विचार पिनद्ध। भाषा वाहिका है , जिसका वह वहन करती है , वह केवल मनुष्य रखता है।
फ़िल्म में निरूपा राय चीखती हैं , आवाज़ चली जाती है। यह विज्ञान की इस देश में उस समय की शोचनीय स्थिति बताता है। नाटकीयता किस तरह हमारे मन पर हावी है। कैसे हम पाँच साल के बच्चे से बेहतर नहीं सोच पाते , बढ़ते-बढ़ते जाते जिस्मों के बावजूद।
अगली कुछ पोस्टें भाषा पर। उसकी उत्पत्ति पर। उसकी निःसरण पर। वह कहाँ बनकर कैसे निकलती है। क्यों लोग बोल नहीं पाते , कैसे भाषा के विकार जन्मते हैं।
साभार- डॉ स्कंद शुक्ल।
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