समय क्या है ? यह कैसे उत्पन्न हो जाता है ? यह सवाल आपके मन मे कभी न कभी जरूर आया ही होगा। हम जल्दी समय को परिभाषित तो नही करते लेकिन समय को ...
समय क्या है ? यह कैसे उत्पन्न हो जाता है ?
यह सवाल आपके मन मे कभी न कभी जरूर आया ही होगा। हम जल्दी समय को परिभाषित तो नही करते लेकिन समय को अलग-अलग नजरियों से जरूर देखते है जैसे- समय बड़ा बलवान है, समय धन है, समय की कद्र करनी चाहिए, समय नष्ट नही करनी चाहिए.. इत्यादि।
भौतिक विज्ञान के दृष्टिकोण से देखे तो समय को एक भ्रम माना जाता है क्योंकि भौतिकी के नियम में समय का कोई प्रवाह विद्यमान नही होता बस हमारे व्यक्तिपरत दृष्टिकोण से ही ऐसा प्रतीत होता है की सभी चीजे लगातार बदल रही है तो समय प्रवाहमान है। क्या आप व्यवहारिक दृष्टिकोण से समय को भ्रम मान सकते है। हम नही जानते की समय क्या है लेकिन समय बीतने का अनुभव हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

अब यहाँ सवाल उठ खड़ा होता है की हम या हमारा मस्तिष्क समय की अनुभूति कैसे कर लेता है ? इस सवाल का जवाब मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(Massachusetts Institute of Technology: MIT) के न्यूरोसाइंटिस्टो की एक टीम ने दिया है। इन वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक मानव मस्तिष्क के साथ साथ जानवरों के मस्तिष्क में होनेवाले न्यूरॉन गतिविधियों को समझने का प्रयास किया है और इन वैज्ञानिकों का अध्ययन हमे समय अनुभूति के रहस्य को समझा रहा है। इन न्यूरोसाइंटिस्टो द्वारा किये शोध अध्ययन को नेचर न्यूरोसाइंस में प्रकाशित किया जा चुका है।
इन शोधकर्ताओं ने अपने शोध अध्ययन में कहा है “वास्तव में समय की अनुभूति करने के लिए न्यूरॉन ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। न्यूरॉन का एक खास व्यवहार ही समय-अंतराल को आपके समक्ष प्रस्तुत कर देता है। ये न्यूरॉन कभी फ़ैलते है तो कभी सिकुड़ जाते है उनका यह व्यवहार ही आपके मस्तिष्क को समय की अनुभूति प्रदान करता है।”
MIT के मैकगवर्न इंस्टीट्यूट फ़ॉर ब्रेन रिसर्च(McGovern Institute for Brain Research) और लाइफ साइंसेज(SCD Life Sciences) के प्रोफेसर मेहरदाद जज़ाएरी(Mehrdad Jazayeri) और रोबर्ट स्वानसन(Robert A. Swanson) जो इस शोध में शामिल थे उनका कहना है “हमने जो मस्तिष्क में देखा है वह बड़ा ही सक्रिय प्रक्रिया है। मस्तिष्क किसी बिंदु तक पहुँचने के लिए किसी घड़ी का इंतजार नही करता बल्कि वह स्वयं समय को नियंत्रित करता है।”
समय अनुभूति के प्रारंभिक मॉडल में से एक जिसे घड़ी संचय मॉडल(clock accumulator model) भी कहा जाता है। इस मॉडल द्वारा यह सुझाव दिया गया था की मस्तिष्क के अंदर एक आंतरिक घड़ी मौजूद होती है जो मस्तिष्क को समय का आभास कराती है। बाद में इस मॉडल में थोड़ा बदलाव कर नया सुझाव दिया गया की मस्तिष्क द्वारा विभिन्न आवृत्तियों की तरंगों को सिंक्रोनाइजेशन(synchronization) कर समय का आभास किया जाता है। लेकिन MIT के न्यूरोसइंटिस्टों ने अपने शोध पत्र में स्पष्ट कहा है की मस्तिष्क के साथ ये सभी मॉडल बिल्कुल मेल नही खाते। हमे कोई भी सबूत नही मिला है जिससे यह कहा जाय की कोई केंद्रीयकृत घड़ी मस्तिष्क में मौजूद है।
इन वैज्ञानिकों ने अपने शोध पत्र में उल्लेख किया है बहुत सारे लोग हमसे यह सवाल करते है की मानव मस्तिष्क समय की अनुभूति करने के लिए ऊर्जा क्यों खर्च करती है ? क्या मानव मस्तिष्क को समय अनुभूति की हमेशा आवश्यकता पड़ती है ? वास्तब में मानव मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को बहुत ही सटीक समय की आवश्यकता होती है इसलिए वह अपने समय-प्रदर्शन को ही अपने कार्य मे लाता है इसके लिए मस्तिष्क को समय की अनुभूति करना बड़ा महत्वपूर्ण है।
अन्य संभावनाओं को समझने के लिए मानव मस्तिष्क के साथ-साथ तीन जानवरों के मस्तिष्क के न्यूरॉन गतिविधियों को भी दर्ज किया गया है। शोध के अनुसार जानवरो के मस्तिष्क का समय-अंतराल, मनुष्यों के समय-अंतराल से अलग है बल्कि उन तीन जानवरों का समय-अंतराल भी बिल्कुल अलग-अलग है। आकड़ो के अनुसार- 850 मिलिसेकंड, 1500 मिलिसेकंड, 2000 मिलिसेकंड। इन समय-अंतराल के दौरान न्यूरॉन गतिविधियां एक जटिल पैटर्न के रूप में प्रदर्शित होती है कुछ न्यूरॉन तेजी से क्रियाशील हो जाते है, कुछ धीमी गति से और कुछ तेजी से क्रियाशील होकर धीमे पड़ जाते है।
किसी भी समय न्यूरॉन्स का एक संग्रह एक विशेष न्यूरॉन्स स्टेट में होता है जो बदलता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति का न्यूरॉन गतिविधि अपने अलग-अलग तरीके से बदलाव करता रहता है। न्यूरॉन्स हमेशा अपनी प्रारंभिक अवस्था से इस अंत अवस्था तक उसी गति की यात्रा करते है केवल एक चीज जो बदली जाती है वह है दर जिस पर न्यूरॉन्स ने इस प्रक्षेपवक्र की यात्रा की थी। जब आपको समय-अंतराल लंबा महसूस हो तो इसका अर्थ है न्यूरॉन सिकुड़ गया है जिसके कारण उसका प्रक्षेपवक्र फैल गया है या बड़ा हो गया है। समय-अंतराल छोटा अनुभव हो तो प्रक्षेपवक्र सिकुड़ गया है क्योंकि न्यूरॉन फैल गया है।
मेहरदाद जज़ाएरी कहते है “मस्तिष्क प्रक्षेपवक्र में बदलाव नहीं करता है बल्कि न्यूरॉन गति दर को बदलता है जिसके वह फर्स्ट स्टेट से अंतिम स्टेट तक जाता है।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में मानव मस्तिष्क के तीन भागों को शामिल किया है जिसमे डोरोस्मेडियल फ्रंटल कॉर्टेक्स(dorsomedial frontal cortex), कॉडेट(caudate)और थैलेमस(thalamus) शामिल है। हमने डोर्सोमेडियल फ्रंटल कॉर्टेक्स में कई प्रकार के विशिष्ट तंत्रिका पैटर्न को देखा है जो कई ज्ञान-संबंधी प्रक्रियाओं में शामिल है। कॉडेट जो की नियंत्रण और कुछ सीखने में शामिल है। थैलेमस जो की संवेदी संकेतों को प्रसारित करता है उनमें हमे एक अलग पैटर्न देखेने को मिला है जो की न्यूरॉन्स को आवश्यकता के अनुसार समय-अंतराल के आधार पर उनकी गति दर में वृद्धि या कमी के लिए शामिल है। शोधकर्ताओं का यह शोध थैलेमस द्वारा विशिष्ट अंतराल उत्पन्न करने के लिए अपनी गतिविधि को कैसे समायोजित करता है इस को निर्देशित कर रहा है।
शोधकर्ताओं ने इस घटना को विस्तार से समझने में उनकी और मदद करने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल बनाया है। जिसमे यादृच्छिक तरीके से सैकड़ों न्यूरॉन्स के एक मॉडल के साथ उनका शोध शुरू किया जा चुका है इस शोध में अन्य प्रशिक्षित जानवरों के मस्तिष्क मॉडल को भी इसमें शामिल किया जाना है। वैज्ञानिक अब यह समझने में लगे है की मस्तिष्क समय-अंतराल के दौरान देखे गए तंत्रिका पैटर्न को कैसे तैयार करता है और विभिन्न समय-अंतराल उत्पादन करने में हमारी मस्तिष्क कैसे हमारी क्षमता को प्रभावित करती है।
मेहरदाद जज़ाएरी ने कहा हम आगे भी अपना शोध जारी रखेंगे और हमे शोध कार्य के लिए विभिन्न फाउंडेशन द्वारा अनुदान भी दिया जा रहा है जिसमे नीदरलैंड वैज्ञानिक संगठन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, स्लोअन फाउंडेशन, क्लिंगनस्टाइन फाउंडेशन, सिमंस फाउंडेशन, सेंसरिमेटर न्यूरल इंजीनियरिंग और MIT का मैकगवर्न संस्थान शामिल है।
Journal reference: Nature Neuroscience.
स्रोत: Massachusetts Institute of Technology.
यह सवाल आपके मन मे कभी न कभी जरूर आया ही होगा। हम जल्दी समय को परिभाषित तो नही करते लेकिन समय को अलग-अलग नजरियों से जरूर देखते है जैसे- समय बड़ा बलवान है, समय धन है, समय की कद्र करनी चाहिए, समय नष्ट नही करनी चाहिए.. इत्यादि।
भौतिक विज्ञान के दृष्टिकोण से देखे तो समय को एक भ्रम माना जाता है क्योंकि भौतिकी के नियम में समय का कोई प्रवाह विद्यमान नही होता बस हमारे व्यक्तिपरत दृष्टिकोण से ही ऐसा प्रतीत होता है की सभी चीजे लगातार बदल रही है तो समय प्रवाहमान है। क्या आप व्यवहारिक दृष्टिकोण से समय को भ्रम मान सकते है। हम नही जानते की समय क्या है लेकिन समय बीतने का अनुभव हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

अब यहाँ सवाल उठ खड़ा होता है की हम या हमारा मस्तिष्क समय की अनुभूति कैसे कर लेता है ? इस सवाल का जवाब मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(Massachusetts Institute of Technology: MIT) के न्यूरोसाइंटिस्टो की एक टीम ने दिया है। इन वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक मानव मस्तिष्क के साथ साथ जानवरों के मस्तिष्क में होनेवाले न्यूरॉन गतिविधियों को समझने का प्रयास किया है और इन वैज्ञानिकों का अध्ययन हमे समय अनुभूति के रहस्य को समझा रहा है। इन न्यूरोसाइंटिस्टो द्वारा किये शोध अध्ययन को नेचर न्यूरोसाइंस में प्रकाशित किया जा चुका है।

MIT के मैकगवर्न इंस्टीट्यूट फ़ॉर ब्रेन रिसर्च(McGovern Institute for Brain Research) और लाइफ साइंसेज(SCD Life Sciences) के प्रोफेसर मेहरदाद जज़ाएरी(Mehrdad Jazayeri) और रोबर्ट स्वानसन(Robert A. Swanson) जो इस शोध में शामिल थे उनका कहना है “हमने जो मस्तिष्क में देखा है वह बड़ा ही सक्रिय प्रक्रिया है। मस्तिष्क किसी बिंदु तक पहुँचने के लिए किसी घड़ी का इंतजार नही करता बल्कि वह स्वयं समय को नियंत्रित करता है।”
समय अनुभूति के प्रारंभिक मॉडल में से एक जिसे घड़ी संचय मॉडल(clock accumulator model) भी कहा जाता है। इस मॉडल द्वारा यह सुझाव दिया गया था की मस्तिष्क के अंदर एक आंतरिक घड़ी मौजूद होती है जो मस्तिष्क को समय का आभास कराती है। बाद में इस मॉडल में थोड़ा बदलाव कर नया सुझाव दिया गया की मस्तिष्क द्वारा विभिन्न आवृत्तियों की तरंगों को सिंक्रोनाइजेशन(synchronization) कर समय का आभास किया जाता है। लेकिन MIT के न्यूरोसइंटिस्टों ने अपने शोध पत्र में स्पष्ट कहा है की मस्तिष्क के साथ ये सभी मॉडल बिल्कुल मेल नही खाते। हमे कोई भी सबूत नही मिला है जिससे यह कहा जाय की कोई केंद्रीयकृत घड़ी मस्तिष्क में मौजूद है।
इन वैज्ञानिकों ने अपने शोध पत्र में उल्लेख किया है बहुत सारे लोग हमसे यह सवाल करते है की मानव मस्तिष्क समय की अनुभूति करने के लिए ऊर्जा क्यों खर्च करती है ? क्या मानव मस्तिष्क को समय अनुभूति की हमेशा आवश्यकता पड़ती है ? वास्तब में मानव मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को बहुत ही सटीक समय की आवश्यकता होती है इसलिए वह अपने समय-प्रदर्शन को ही अपने कार्य मे लाता है इसके लिए मस्तिष्क को समय की अनुभूति करना बड़ा महत्वपूर्ण है।

किसी भी समय न्यूरॉन्स का एक संग्रह एक विशेष न्यूरॉन्स स्टेट में होता है जो बदलता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति का न्यूरॉन गतिविधि अपने अलग-अलग तरीके से बदलाव करता रहता है। न्यूरॉन्स हमेशा अपनी प्रारंभिक अवस्था से इस अंत अवस्था तक उसी गति की यात्रा करते है केवल एक चीज जो बदली जाती है वह है दर जिस पर न्यूरॉन्स ने इस प्रक्षेपवक्र की यात्रा की थी। जब आपको समय-अंतराल लंबा महसूस हो तो इसका अर्थ है न्यूरॉन सिकुड़ गया है जिसके कारण उसका प्रक्षेपवक्र फैल गया है या बड़ा हो गया है। समय-अंतराल छोटा अनुभव हो तो प्रक्षेपवक्र सिकुड़ गया है क्योंकि न्यूरॉन फैल गया है।
मेहरदाद जज़ाएरी कहते है “मस्तिष्क प्रक्षेपवक्र में बदलाव नहीं करता है बल्कि न्यूरॉन गति दर को बदलता है जिसके वह फर्स्ट स्टेट से अंतिम स्टेट तक जाता है।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में मानव मस्तिष्क के तीन भागों को शामिल किया है जिसमे डोरोस्मेडियल फ्रंटल कॉर्टेक्स(dorsomedial frontal cortex), कॉडेट(caudate)और थैलेमस(thalamus) शामिल है। हमने डोर्सोमेडियल फ्रंटल कॉर्टेक्स में कई प्रकार के विशिष्ट तंत्रिका पैटर्न को देखा है जो कई ज्ञान-संबंधी प्रक्रियाओं में शामिल है। कॉडेट जो की नियंत्रण और कुछ सीखने में शामिल है। थैलेमस जो की संवेदी संकेतों को प्रसारित करता है उनमें हमे एक अलग पैटर्न देखेने को मिला है जो की न्यूरॉन्स को आवश्यकता के अनुसार समय-अंतराल के आधार पर उनकी गति दर में वृद्धि या कमी के लिए शामिल है। शोधकर्ताओं का यह शोध थैलेमस द्वारा विशिष्ट अंतराल उत्पन्न करने के लिए अपनी गतिविधि को कैसे समायोजित करता है इस को निर्देशित कर रहा है।
शोधकर्ताओं ने इस घटना को विस्तार से समझने में उनकी और मदद करने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल बनाया है। जिसमे यादृच्छिक तरीके से सैकड़ों न्यूरॉन्स के एक मॉडल के साथ उनका शोध शुरू किया जा चुका है इस शोध में अन्य प्रशिक्षित जानवरों के मस्तिष्क मॉडल को भी इसमें शामिल किया जाना है। वैज्ञानिक अब यह समझने में लगे है की मस्तिष्क समय-अंतराल के दौरान देखे गए तंत्रिका पैटर्न को कैसे तैयार करता है और विभिन्न समय-अंतराल उत्पादन करने में हमारी मस्तिष्क कैसे हमारी क्षमता को प्रभावित करती है।
मेहरदाद जज़ाएरी ने कहा हम आगे भी अपना शोध जारी रखेंगे और हमे शोध कार्य के लिए विभिन्न फाउंडेशन द्वारा अनुदान भी दिया जा रहा है जिसमे नीदरलैंड वैज्ञानिक संगठन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, स्लोअन फाउंडेशन, क्लिंगनस्टाइन फाउंडेशन, सिमंस फाउंडेशन, सेंसरिमेटर न्यूरल इंजीनियरिंग और MIT का मैकगवर्न संस्थान शामिल है।
Journal reference: Nature Neuroscience.
स्रोत: Massachusetts Institute of Technology.
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