त्रिआयामी होलोग्राफी(3D Holography) एक स्टेटिक किरण प्रादर्शी प्रदर्शन युक्ति होती है। इस तकनीक में किसी वस्तु से निकलने वाले प्रकाश को रिकॉ...
त्रिआयामी होलोग्राफी(3D Holography) एक स्टेटिक किरण प्रादर्शी प्रदर्शन युक्ति होती है। इस तकनीक में किसी वस्तु से निकलने वाले प्रकाश को रिकॉर्ड कर बाद में पुनर्निर्मित किया जाता है, जिससे उस वस्तु के रिकॉर्डिंग माध्यम के सापेक्ष छवि में वही स्थिति प्रतीत होती है, जैसी रिकॉर्डिंग के समय थी। ये छवि देखने वाले की स्थिति और ओरियन्टेशन के अनुसार वैसे ही बदलती प्रतीत होती है, जैसी कि उस वस्तु के उपस्थित होने पर होती। इस प्रकार अंकित छवि एक त्रिआयामि चित्र प्रस्तुत करती है और त्रिआयामी होलोग्राफी(Three Dimensional Holography) कहलाती है।

होलोग्राम का आविष्कार ब्रिटिश-हंगेरीयन भौतिक विज्ञानी डैनिस गैबर(Dennis Gabor) ने सन 1947 में किया था, जिसे सन् 1960 में और विकसित किया गया। इसके बाद इसे औद्योगिक उपयोग में लाया गया। इसका उपयोग पुस्तकों के कवर, क्रेडिट कार्ड आदि पर एक छोटी सी रूपहली चौकोर पट्टी के रूप में दिखाई देता है। इसे ही होलोग्राम(Hologram) कहा जाता है। यह देखने में त्रिआयामी छवि या त्रिबिंब प्रतीत होती है, किन्तु ये मूल रूप में द्विआयामी आकृति का ही होता है। इसके लिये दो द्विआयामी आकृतियों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता जाता है इसे तकनीकी भाषा में सुपरइंपोजिशन(Superimposition) कहते हैं। सुपरइंपोजिशन के कारण ही मानव आंख को गहराई का भ्रम होता है। मानव आंख द्वारा जब होलोग्राम को देखा जाता है तो वह दोनों छवियों को मिलाकर जो संकेत मस्तिष्क को मिलती है उसके कारण ही मस्तिष्क को उसके त्रिआयामी होने का भ्रम होता है।
लेकिन अब नयी तकनीक आपको इससे भी आगे ले जाने वाली है। आपने बड़ी-बड़ी स्क्रीन पर बहुत सी फिल्में देखी होगी, बहुचर्चित फ़िल्म स्टार वार्स(Star Wars) में R2-D2 बीम के द्वारा त्रिआयामी छवि के रूप में एक काल्पनिक पात्र राजकुमारी लिया(Princess Leia) को हवा में दिखाया गया है। लेकिन ब्रिंघम यंग यूनिवर्सिटी(Brigham Young University) के डान समेल्ली लैब(Dan Smalley Lab) के वैज्ञानिकों ने अपनी नई तकनीक के द्वारा इसे यथार्थ कर दिखा दिया है। वैज्ञानिकों ने कहा हवा में मौजूद कण जो आमतौर पर कभी दिखाई नही देते वास्तब में उन कणों में एक बड़ा ही चमत्कारी गुण होता है वह गुण है उनका हेर-फेर। इसी गुण का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने 3D छवि का निर्माण पतली हवा के परत में कर दिखा दिया है। इस तकनीक में होलोग्राम की तुलना में अधिक यथार्थवादी और ज्यादा स्पस्ट 3D छवियों का निर्माण किया जा सकता है। वैज्ञानिकों की इस शोध अध्ययन को नेचर पत्रिका में पढ़ा जा सकता है। इस शोध अध्ययन के प्रमुख डेनियल समेल्ली(Daniel Smalley) ने इस नयी तकनीक के बारे में कहा “आप अंतरिक्ष में कुछ भी छपाई कर रहे है तो अंतरिक्ष इसे बहुत जल्दी मिटा देती है। यह अंतरिक्ष का चमत्कारी गुण है।”

शोधकर्ताओं ने अपने प्रदर्शन में एक छोटी तितली को उँगली के ऊपर नृत्य करते और स्टार वार्स के एक दृश्य में लिया की नकल करती एक त्रिआयामी छवि का निर्माण करते सबको इस नयी तकनीक से रूबरू कर दिया है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह तकनीक अबतक का सबसे उन्नत 3D चलचित्र तकनीक है। रोचेस्टर विश्वविद्यालय(University of Rochester) के प्रो कर्टिस ब्रॉडबेंट (Curtis Broadbent) का कहना है “प्रतिस्पर्धा की प्रधौगिकी को हमेशा बढ़ावा देता है। यह वास्तव में बेहतरीन 3D चलचित्र तकनीक है। यदि आप इस 3D चलचित्र के चारों तरफ भी लोगों को खड़ा कर दे तब भी प्रत्येक व्यक्ति इसे अपने दृष्टिकोण से देख पायेगा जबकि होलोग्राम तकनीक में ऐसा संभव नही होता। हम होलोग्राम तकनीक से अब इस तरह की उन्नत तकनीक की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे है। मानवी आंखे होलोग्राम को तीन आयामी मानती है लेकिन वहाँ सभी जादू दो आयामी सतह पर ही हो रहा होता है।”
डेनियल समेल्ली ने अपने शोधपत्र में लिखा है “जब आप किसी प्रोजेक्शन कण पर बीम डालते है तब गुरुत्वाकर्षण कणों को भटकाने और नीचे की ओर आकर्षित करने लगता है इससे छवियों को लगातार बनाये रखना असंभव हो जाता है लेकिन लेज़र लाइट का उपयोग छवियों को यथास्थिति बनाये रखने में मदद करता है क्योंकि लेज़र लाइट के द्वारा हवा का दबाव को बदल दिया जाता है। इसलिए इस तरह के प्रोजेक्शन(projections) को तकनीकी भाषा मे वोल्यूमेट्रिक डिस्प्ले(Volumetric display) कहा जाता है। तकनीकी रूप से इस का प्रदर्शन दो आयामी प्रिंटर से तीन आयामी प्रिंटर पर स्थानांतरण की तरह ही है। फ़िलहाल हमारा प्रोजेक्शन काफी छोटा है लेकिन हमारा प्रयास रहेगा की बहुत सारे बीम के माध्यम से बड़े प्रोजेक्शन को स्थापित किया जाय। यह तकनीक भविष्य में चिकित्सा प्रक्रियाओं में काफी मददगार साबित हो सकता है साथ ही 3D चलचित्र के रूप में मनोरंजन के लिए बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। वैसे इस तकनीक का दैनिक उपयोग फ़िलहाल संभव तो नही है लेकिन भविष्य में यह तकनीक आपके लिए उपलब्ध कराने की हमारी योजना पर कार्य किया जा रहा है।”
Journal reference: Nature(2018).

होलोग्राम का आविष्कार ब्रिटिश-हंगेरीयन भौतिक विज्ञानी डैनिस गैबर(Dennis Gabor) ने सन 1947 में किया था, जिसे सन् 1960 में और विकसित किया गया। इसके बाद इसे औद्योगिक उपयोग में लाया गया। इसका उपयोग पुस्तकों के कवर, क्रेडिट कार्ड आदि पर एक छोटी सी रूपहली चौकोर पट्टी के रूप में दिखाई देता है। इसे ही होलोग्राम(Hologram) कहा जाता है। यह देखने में त्रिआयामी छवि या त्रिबिंब प्रतीत होती है, किन्तु ये मूल रूप में द्विआयामी आकृति का ही होता है। इसके लिये दो द्विआयामी आकृतियों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता जाता है इसे तकनीकी भाषा में सुपरइंपोजिशन(Superimposition) कहते हैं। सुपरइंपोजिशन के कारण ही मानव आंख को गहराई का भ्रम होता है। मानव आंख द्वारा जब होलोग्राम को देखा जाता है तो वह दोनों छवियों को मिलाकर जो संकेत मस्तिष्क को मिलती है उसके कारण ही मस्तिष्क को उसके त्रिआयामी होने का भ्रम होता है।
लेकिन अब नयी तकनीक आपको इससे भी आगे ले जाने वाली है। आपने बड़ी-बड़ी स्क्रीन पर बहुत सी फिल्में देखी होगी, बहुचर्चित फ़िल्म स्टार वार्स(Star Wars) में R2-D2 बीम के द्वारा त्रिआयामी छवि के रूप में एक काल्पनिक पात्र राजकुमारी लिया(Princess Leia) को हवा में दिखाया गया है। लेकिन ब्रिंघम यंग यूनिवर्सिटी(Brigham Young University) के डान समेल्ली लैब(Dan Smalley Lab) के वैज्ञानिकों ने अपनी नई तकनीक के द्वारा इसे यथार्थ कर दिखा दिया है। वैज्ञानिकों ने कहा हवा में मौजूद कण जो आमतौर पर कभी दिखाई नही देते वास्तब में उन कणों में एक बड़ा ही चमत्कारी गुण होता है वह गुण है उनका हेर-फेर। इसी गुण का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने 3D छवि का निर्माण पतली हवा के परत में कर दिखा दिया है। इस तकनीक में होलोग्राम की तुलना में अधिक यथार्थवादी और ज्यादा स्पस्ट 3D छवियों का निर्माण किया जा सकता है। वैज्ञानिकों की इस शोध अध्ययन को नेचर पत्रिका में पढ़ा जा सकता है। इस शोध अध्ययन के प्रमुख डेनियल समेल्ली(Daniel Smalley) ने इस नयी तकनीक के बारे में कहा “आप अंतरिक्ष में कुछ भी छपाई कर रहे है तो अंतरिक्ष इसे बहुत जल्दी मिटा देती है। यह अंतरिक्ष का चमत्कारी गुण है।”

शोधकर्ताओं ने अपने प्रदर्शन में एक छोटी तितली को उँगली के ऊपर नृत्य करते और स्टार वार्स के एक दृश्य में लिया की नकल करती एक त्रिआयामी छवि का निर्माण करते सबको इस नयी तकनीक से रूबरू कर दिया है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह तकनीक अबतक का सबसे उन्नत 3D चलचित्र तकनीक है। रोचेस्टर विश्वविद्यालय(University of Rochester) के प्रो कर्टिस ब्रॉडबेंट (Curtis Broadbent) का कहना है “प्रतिस्पर्धा की प्रधौगिकी को हमेशा बढ़ावा देता है। यह वास्तव में बेहतरीन 3D चलचित्र तकनीक है। यदि आप इस 3D चलचित्र के चारों तरफ भी लोगों को खड़ा कर दे तब भी प्रत्येक व्यक्ति इसे अपने दृष्टिकोण से देख पायेगा जबकि होलोग्राम तकनीक में ऐसा संभव नही होता। हम होलोग्राम तकनीक से अब इस तरह की उन्नत तकनीक की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे है। मानवी आंखे होलोग्राम को तीन आयामी मानती है लेकिन वहाँ सभी जादू दो आयामी सतह पर ही हो रहा होता है।”
डेनियल समेल्ली ने अपने शोधपत्र में लिखा है “जब आप किसी प्रोजेक्शन कण पर बीम डालते है तब गुरुत्वाकर्षण कणों को भटकाने और नीचे की ओर आकर्षित करने लगता है इससे छवियों को लगातार बनाये रखना असंभव हो जाता है लेकिन लेज़र लाइट का उपयोग छवियों को यथास्थिति बनाये रखने में मदद करता है क्योंकि लेज़र लाइट के द्वारा हवा का दबाव को बदल दिया जाता है। इसलिए इस तरह के प्रोजेक्शन(projections) को तकनीकी भाषा मे वोल्यूमेट्रिक डिस्प्ले(Volumetric display) कहा जाता है। तकनीकी रूप से इस का प्रदर्शन दो आयामी प्रिंटर से तीन आयामी प्रिंटर पर स्थानांतरण की तरह ही है। फ़िलहाल हमारा प्रोजेक्शन काफी छोटा है लेकिन हमारा प्रयास रहेगा की बहुत सारे बीम के माध्यम से बड़े प्रोजेक्शन को स्थापित किया जाय। यह तकनीक भविष्य में चिकित्सा प्रक्रियाओं में काफी मददगार साबित हो सकता है साथ ही 3D चलचित्र के रूप में मनोरंजन के लिए बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। वैसे इस तकनीक का दैनिक उपयोग फ़िलहाल संभव तो नही है लेकिन भविष्य में यह तकनीक आपके लिए उपलब्ध कराने की हमारी योजना पर कार्य किया जा रहा है।”
Journal reference: Nature(2018).
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