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विश्व का प्रथम स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन मीर –-

मीर अंतरिक्ष केंद्र विश्व के प्रथम स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन मीर को 20 फरवरी 1986 को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। 23 मार्च सन 2001 को भारतीय ...









मीर अंतरिक्ष केंद्र



विश्व के प्रथम स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन मीर को 20 फरवरी 1986 को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। 23 मार्च सन 2001 को भारतीय समय के दिन के 11 बजकर 29 मिनट पर न्यूजीलैंड और चिली के बीच के समुद्र में जलसमाधि के साथ अंत हो गया और इसी के साथ अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र के एक गौरवशाली इतिहास का भी अंत हुआ।


मीर शब्द रूसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है शांति। अपने 15 साल के अंतरिक्ष प्रवास में मीर अंतरिक्ष स्टेशन ने मानव कल्याण की दृष्टि से अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए और शायद इसने ‘यथा नामो तथा गुणो’ लोकोक्ति को भी चरितार्थ कर दिया।


स्थापना


अंतरिक्ष स्टेशन मीर 20 फरवरी 1986 को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। प्रारंभ में इसमें केवल कोर माड्यूल ही लगाया गया था तथा बाद में इसमें अनेक माड्यूल जोड़े गए। यह पृथ्वी से 225 मील की दूरी पर पृथ्वी का चक्कर लगाता था तथा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने की इसकी गति थी 17500 मील प्रति घंटा। एक दिन में यह पृथ्वी के 16 चक्कर लगाता था तथा पृथ्वी से इसका संपर्क मास्को स्थित नियंत्रण कक्ष के द्वारा किया जाता था। पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर मीर अंतरिक्ष स्टेशन के अंतरिक्ष पक्ष का झुकाव 51.6 डिग्री होता था। 23 मार्च सन 2001 तक मीर अंतरिक्ष स्टेशन ने पृथ्वी की 88000 परिक्रमाएँ कर ली थीं। इसमें सामान्यतया एक बार में दो से तीन अंतरि7 यात्री रहते थे, लेकिन एक-आध सप्ताह की अल्प अवधि के मिशनों में छह अंतरिक्ष स्टेशन का निर्धारित जीवनकाल सात साल का रखा गया था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्टेशन की जीवनकाल बढ़ा दी गई। इसका भार 130 टन था जिसमें टी-आकार में व्यवस्थित इसके छह माड्यूल शामिल थे तथा इसकी लंबाई 85 फुट और चौड़ाई 98 फुट थी। इस अंतरिक्ष स्टेशन का आकार एक रेलकार की भाँति अंतरिक्ष में था। 23 मार्च, 2001 को जब यह पृथ्वी पर वापस लाया गया तो रेकॉर्ड की बात यह थी कि अंतरिक्ष से पृथ्वी पर गिरनेवाला यह सबसे विशाल मानव निर्मित पिंड था। अमेरिकी स्पेस शटल और अंतरिक्ष स्टेशन मीर पहली बार फरवरी 1995 में सबसे अधिक समीप आए। जून 1995 में पहली बार अमेरिकी स्पेस शटल मीर अंतरिक्ष स्टेशन से अंतरिक्ष में जुड़ी। अपने पूरे जीवनकाल में मीर अंतरिक्ष स्टेशन ने पृथ्वी का चक्कर लगाने में 3.6 बिलियन किलोमीटर की यात्रा की। कई मामलों में इसने मानव जाति के लिए अपने को अंतरिक्ष में वास्तविक आवास के रूप में सिद्ध करके दिखाया।


निर्माण


130 टन के मीर अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण अंतरिक्ष में एक बार में पूरा नहीं हुआ, बल्कि कई माड्यूल जोड़कर पूरा किया गया। मीर अंतरिक्ष स्टेशन का पहला अवयव 20 टन का कोर माड्यूल था जिसे फरवरी, 1986 में अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। जिस समय इसे अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया, उस समय इसे अंतरिक्ष शहर के एक भाग की संज्ञा दी गई थी। मीर स्टेशन का कोर माड्यूल इसके पहले के रूसी अंतरिक्ष स्टेशन सैल्यूट-7 से मिलता-जुलता था, अंतर केवल यह था कि कोर माड्यूल में भविष्य में जोड़े जानेवाले माड्यूलों के लिए डाकिंग पोर्ट थे।


31 मार्च 1987 को क्वांट-1 माड्यूल अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया तथा 9 अप्रैल, 1987 को यह मीर अंतरिक्ष स्टेशन के कोर माड्यूल से अंतरिक्ष में जाकर जुड़ गया। इसमें ऑस्ट्रोफिजिक्स और अन्य वैज्ञानिक प्रयोग किए गए थे। इसमें एक प्रयोगशाला, ट्रांसफर चैंबर और दाबरहित कंपार्टमेंट थे। 26 नवंबर, 1989 को क्वांट-2 माड्यूल प्रक्षेपित हुआ और छह दिसंबर 1989 को मीर स्टेशन से जुड़ा। इस मोड्यूल में तीन दाबयुक्त कंपार्टमेंट थे। इस माड्यूल ने मीर स्टेशन के लिए वैज्ञानिक हार्डवेयर और उपकरण प्रदान किए। 31 मई 1990 को एक अन्य माड्यूल-क्रिस्टल माड्यूल भेजा गया जो 10 जून 1990 को अंतरिक्ष में मीर से जाकर जुड़ा। इसमें अन्य प्रकार के वैज्ञानिक और तकनीकी परीक्षण किए गए। 20 मई 1995 को प्रक्षेपित और 1 जून 1995 को मीर स्टेशन से जुड़े स्पेक्टर माड्यूल का प्रयोग पृथ्वी के संपदा स्रोतों का पता लगाने के लिए किया गया। 12 नवंबर 1995 को डाकिंग माड्यूल प्रक्षेपित किया गया जो मीर स्टेशन से 15 नवंबर 1995 को जुड़ा। इसी डाकिंग माड्यूल से 9 बार अमेरिकी स्पेस शटल मीर से आकर जुड़ी थी। 23 अप्रैल 1996 को मीर स्टेशन का आखिरी माड्यूल-प्रिरोदा माड्यूल छोड़ा गया जो 26 अप्रैल 1996 को मीर अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ा। इस माड्यूल के द्वारा पृथ्वी संपदा स्रोतों, अंतरिक्ष विकिरण, भू-भौतिक प्रक्रियाएँ और पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन किया गया।


कार्य


मीर अंतरिक्ष स्टेशन में लगभग 30 हज़ार प्रकार के वैज्ञानिक परीक्षण और अनुसंधान किए गए। मानवयुक्त अंतरिक्ष अन्वेषण की दृष्टि से 6400 से भी ज़्यादा परीक्षण तकनीकी संभावनाओं की जाँच के लिए किए गए। सुदूर संवेदन तकनीकी से संबंधित सुविधाओं और तरीकों के परीक्षण के लिए लगभग 2400 परीक्षण हुए। अंतरिक्ष जीव विज्ञान से संबंधित कुल परीक्षणों की अवधि थी लगभग डेढ़ वर्ष। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में मीर अंतरिक्ष स्टेशन की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। 12 देशों के सहयोग से लगभग 27 अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशन संपादित किए गए। इसके साथ-साथ विभिन्न देशों के उपकरणों का प्रयोग करते हुए लगभग 7000 चिकित्सीय, तकनीकी और अन्य प्रयोग संपन्न किए गए। अंतरिक्ष में कुछ पदार्थों का निर्माण गुणवत्ता की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए लगभग 2300 परीक्षण किए गए तथा इसके लिए मीर अंतरिक्ष स्टेशन में अनेक उपकरण लगाए गए थे। उदाहरणार्थ- अंतरिक्ष में बनाई गई मिश्र धातु पृथ्वी में बनाई गई मिश्र धातु से बहुत अच्छी होती है। इसके साथ साथ ऑस्ट्रोफिजिक्स के क्षेत्र में 5900 और बायो-तकनीकी के क्षेत्र में 125 प्रयोग संपन्न किए गए।


अंतरिक्ष यात्री


मीर अंतरिक्ष स्टेशन में अनेक अंतरिक्ष यात्रियों ने लंबे अरसे के अंतरिक्ष प्रवास गुज़ारे हैं। 1987 में यूरी रोमैन्को ने मीर स्टेशन में 326 दिन गुज़ारे, 1988 में ब्लैडिमिर टिटोव और मूसा मनारोव ने 365 दिन मीर अंतरिक्ष स्टेशन में गुज़ारे। 1995 में वैलेरी पालिकोव ने मीर अंतरिक्ष स्टेशन में एक समय में 438 दिन बिताकर एक विश्व रिकार्ड स्थापित किया। वैलेरी पालिकोव ने दो उड़ानों के द्वारा अंतरिक्ष स्टेशन मीर में कुल 678 दिन गुज़ारे तथा सरगेई अवडेव ने अपनी 3 उड़ानों के द्वारा अंतरिक्ष में (मीर स्टेशन में) 748 दिन गुज़ारे। सरगेई अवडेव का भी रिकार्ड बना हुआ है।


महिला अंतरिक्ष यात्रियों ने भी मीर अंतरिक्ष स्टेशन में लंबे समय प्रवास गुज़ारे हैं। 1995 में एलेना कोंडाकोवा ने मीर स्टेशन में 169 दिन गुज़ारे तथा अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री शैनन ल्युसिड ने मीर स्टेशन में 188 दिन गुज़ारे। महिलाओं में डॉ. शैनन ल्युसिड का सबसे लंबे अंतरिक्ष प्रवास का रिकार्ड बना हुआ है। विदेशी अंतरिक्ष यात्रियों में शैनन ल्युसिड के अलावा फ्रांस के जीन-पियरे और जर्मनी के थामस रीटर ने मीर अंतरिक्ष स्टेशन में क्रमशः 188 दिन और 179 दिन गुज़ारे।


मीर अंतरिक्ष स्टेशन के प्रथम यात्री ल्योनिड किजिम और ब्लैडिमिर सोलोविए थे तथा इन अंतरिक्ष यात्रियों की ख़ास बात यह थी कि ये पहले मीर अंतरिक्ष स्टेशन में पृथ्वी से आए तथा अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए इसे प्रचालित किया, तत्पश्चात मीर के पहले के स्टेशन (जो अंतरिक्ष में उस समय मौजूद था) सैल्युट 7 पर एक सोयुज अंतरिक्ष यान के द्वारा चले गए। ये अंतरिक्ष यात्री सैल्युट 7 पर दो महीने रहने के बाद पुनः मीर अंतरिक्ष स्टेशन पर वापस आ गए। 1988 में फ्रांस के अंतरिक्ष यात्री जीन लूप चेर्टियन पहले व्यक्ति थे, (गैर रूसी और गैर अमेरिकी) जिन्होंने पहली स्पेस वॉक की। जापान के पत्रकार थे जो मीर अंतरिक्ष स्टेशन में गए। पत्रकार होने के नाते आकीयामा ने अंतरिक्ष से टोकियो आधारित टेलीविजन चैनेल के लिए सजीव टेलीविजन का प्रसारण किया।


अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन अल्फा से संबंधित समुचित अनुभव पाने के लिए अमेरिकी स्पेस शटल 8 बार मीर अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ी। जुड़ने की यह पहली प्रक्रिया 27 जून 1995 से 7 जुलाई 1995 के बीच हुई तथा नौर्वी डाकिंग प्रक्रिया 2 जून 1998 से 12 जून 1998 के बीच संपन्न हुई। अंतरिक्ष स्टेशन मीर में जाने वाले पहले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री थे, डॉ. नार्मन थैगर्ड। वे सोयुज टी एम-21 अंतरिक्ष यान के द्वारा मीर अंतरिक्ष स्टेशन में गए तथा स्पेस शटल की उड़ान एस टी एस-71 के द्वारा पृथ्वी पर वापस आए। सात अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों नार्मन थैगर्ड, शैनन ल्युसिड, जान ब्लाहा, जेरी लिनेंज़र, माइकल फोले, डेविड ओल्फ और ऐंडी थामस ने अंतरिक्ष यात्री मीर अंतरिक्ष स्टेशन जा चुके थे। ब्रिटेन की एकमात्र महिला हेलेन शर्मन भी मीर अंतरिक्ष स्टेशन में गई।


अंत


विश्व के प्रथम स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन मीर का 23 मार्च सन 2001 को भारतीय समय के दिन के 11 बजकर 29 मिनट पर न्यूजीलैंड और चिली के बीच के समुद्र में जलसमाधि के साथ अंत हो गया और इसी के साथ अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र के एक गौरवशाली इतिहास का भी अंत हुआ।


अपने 15 साल के अंतरिक्ष प्रवास में मीर अंतरिक्ष स्टेशन ने मानव कल्याण की दृष्टि से अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए और शायद इसने ‘यथा नामो तथा गुणो’ लोकोक्ति को भी चरितार्थ कर दिया।


मीर शब्द रूसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है शांति। पिछले कुछ वर्षों से मीर अंतरिक्ष स्टेशन में कई समस्याएँ चल रही थीं तथा इसका प्रचालन मुश्किल पड़ रहा था। मीर अंतरिक्ष स्टेशन में छोटी-मोटी कई दुर्घटनाएँ हुईं, लेकिन जून 1997 में मीर अंतरिक्ष स्टेशन और मालवाहक प्रोग्रेस यान के बीच अंतरिक्ष में हुए टकराव से मीर स्टेशन के ढांचे को काफी क्षति हुई और इसमें कुछ दरारें पड़ जाने से एक मोड्यूल की ऑक्सीजन अंतरिक्ष में रिस गई। बाद में इसकी मरम्मत भी की गई। रेकॉर्डों के अनुसार, अंतरिक्ष में दो मानव निर्मित पिंडों के बीच घटित होनेवाला यह पहला टकराव था। जुलाई 2000 में मीर अंतरिक्ष स्टेशन को नीदरलैंड की एक कंपनी मीर कार्प्स ने लीज पर लिया तथा इसको प्रचलित करने का बीड़ा उठाया। मीर कार्प्स कंपनी में 60 प्रतिशत शेयर आरकेके इनर्जिया कंपनी के थे जिसने मीर अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण किया था तथा जो अब तक इस स्टेशन का प्रचालन कर रही थी। सारे प्रयासों के बावजूद जब रूस ने यह महसूस किया कि अंतरिक्ष स्टेशन मीर काफी बूढ़ा हो गया है तथा उसके तमाम तंत्र काम नहीं करत रहे हैं और उसका प्रचालन काफी महँगा पड़ रहा है, तब रूसी अंतरिक्ष अधिकारियों एवं सरकार ने उसे कक्षा से हटाकर (डी ऑरबिट) पृथ्वी में समुद्र में गिरा देने का निर्णय लिया।


मीर अंतरिक्ष स्टेशन को पृथ्वी पर गिराने की प्रक्रिया


मीर अंतरिक्ष स्टेशन को अंतरिक्ष से हटाकर पृथ्वी पर गिराने की तैयारी काफी दिनों से की जा रही थी। इसके लिए जनवरी 2001 के महीने में एक प्रोग्रेस अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष स्टेशन मीर के लिए छो़ड़ा गया जो अंतरिक्ष में जाकर मीर अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ गया। इसमें कई इंजन लगे हुए थे। यहाँ पर प्रोग्रेस अंतरिक्ष यान के विषय में जानना आवश्यक है। प्रोग्रेस अंतरिक्ष यान एक प्रकार का मानवरहित अंतरिक्ष यान होता है जिसके द्वारा अंतरिक्ष स्टेशनों को विभिन्न प्रकार की सामग्री, उपकरण, खाद्य सामग्री, डाक इत्यादि भेजी जाती है। योजना के अनुसार अंतरिक्ष स्टेशन के कंप्यूटर और इंजनों को अंतरिक्ष केंद्र (मास्को के समीप) के साकरे कमांडों का अनुसरण करते हुए मीर स्टेशन को पृथ्वी पर गिराया जाना था।


मीर अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़े आठ इंजनों की पहली फायरिंग भारतीय समय के अनुसार सुबह 6.01 बजे (00.31 ग्रीनविच समय) पर 28 मिनट के लिए की गई और यह तिथि थी 23 मार्च, 2001 की। उस समय मीर अंतरिक्ष स्टेशन हिंद महासागर के ऊपर भूमध्य रेखा से ठीक नीचे था। मीर के प्रोग्रेस यान के इंजनों की दूसरी बार फायरिंग भारतीय समय के अनुसार सुबह 7 बजकर 30 मिनट (02.00 ग्रीनविच समय) पर 24 मिनट के लिए की गई। उस समय मीर अंतरिक्ष स्टेशन पूर्वी अफरीका के ऊपर था। इंजनों की आखिरी फायरिंग तब की गई जब वह टोंगा के ऊपर था। यह फायरिंग 22 मिनट तक चला तथा मीर स्टेशन अब तक ईरान के ऊपर पहुँच चुका था। इन तीनों फायरिंगों में मीर अंतरिक्ष स्टेशन की पृथ्वी से दूरी कम होती गई। जब अंतरिक्ष स्टेशन इंडोनेशिया के ऊपर से गुज़रा तो यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर गया तथा 1500 छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट गया। फिजी के ऊपर आते-आते इन टुकड़ों से हरे-नीले रंग की चमक आने लगी। वायुमंडल के प्रवेश करने के बाद तथा छोटे-छोटे 1500 टुकड़ों में बटने के बाद 130 टन के मीर अंतरिक्ष स्टेशन का 100 टन भार वायुमंडल में ही जल गया तथा टुकड़ों के रूप में 30 टन का भार जलती हुई अवस्था में न्यूजीलैंड में वेलिंग्टन स्थान से 1800 मील की दूरी पर पूर्व में समुद्र में गिरा। मीर के जलते हुए टुकड़े आकाश में फायर बॉल की भाँति 200 मीटर प्रति सेकंड की गति से तैरते हुए देखे गए। यद्यपि योजना और गणना के अनुसार मीर अंतरिक्ष स्टेशन का कोई भी टुकड़ा आवासीय क्षेत्रों में नहीं गिरना था तथा हुआ भी ऐसा, फिर भी सुरक्षा की दृष्टि से ऐसी स्थिति के लिए रूस ने भावी नुकसान से बचने के लिए 20 करोड़ डॉलर का बीमा करवाया था।


मीर अंतरिक्ष की पृथ्वी पर वापसी का सजीव दृश्य देखने के लिए विशेषज्ञों, पत्रकारों और मेहमानों का विशाल समुदाय बृहस्पतिवार की रात और शुक्रवार की सुबह को मास्को के मिशन नियंत्रण केंद्र में एकत्र हुआ था। विभिन्न देशों के राजदूत, वैज्ञानिक विभूतियों (विश्व के 63 देशों के) न इस दृश्य को देखने के लिए मिशन नियंत्रण कक्ष में स्थान ग्रहण किया। इन व्यक्तियों में अधिकांश प्रतिनिधि उन देशों के थे जो अंतरिक्ष स्टेशन मीर की आखिरी कक्षा में पड़ते थे। ये प्रेक्षक थे- ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, चिली, चीन, मंगोलिया, कजाकिस्तान, इटली और मैकेडोनिया। वैसे तो मीर अंतरिक्ष स्टेशन को नष्ट करने का माह फरवरी, 2001 के लिए सुनिश्चित किया गया था, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से इसे रोकना पड़ा था। जिस मानवरहित प्रोग्रेस अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष स्टेशन मीर से जोड़ा गया उसमें 2.7 टन का ईंधन केवल मीर को पृथ्वी पर लाने के लिए था। उसमें 1500 पौंड का अतिरिक्त ईंधन भी था जिसमें 700 पौंड ईंधन प्रोग्रेस यान द्वारा प्रयोग किया जाना था।


मीर को पृथ्वी पर गिराने की भाँति कुछ अन्य विश्व घटनाएँ


जिस तरह मीर को पृथ्वी पर लाया गया वह कोई नई बात नहीं थी। इसके पहले भी इस तरह के मानव निर्मित पिंडों को पृथ्वी पर लाना आम बात रही है, लेकिन मीर के मामले में एक अति विशिष्ट अंतर है और वह यह है कि मीर अंतरिक्ष स्टेशन का भार 130 टन था जो कि अब तक लाए गए मानव निर्मित पिंडों में सबसे बड़ा था। सन 1978 से अब तक मास्को के मिशन नियंत्रण केंद्र ने 80 प्रोग्रेस मानवरहित अंतरिक्ष यानों को तथा अनेक रूसी अंतरिक्ष स्टेशनों को पृथ्वी पर लाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया। इनमें सबसे बड़ा सैल्यूट-7 था जिसका भार 40 टन था तथा जो 1991 में पृथ्वी पर लाया गया। सैल्यूट-7 की वापसी (पृथ्वी पर) योजनाबद्ध तरीके से संभव नहीं हो पाई थी। नियंत्रण कक्ष इसे भी उसी स्थान पर जल प्रवाहित करना चाहता था, जहाँ पर मीर अंतरिक्ष स्टेशन ने जल समाधि ली थी, लेकिन वापसी प्रक्रिया में सोवियत नियंत्रण केंद्र का संपर्क सैल्यूट-7 से टूट गया था तथा वे यह नहीं सुनिश्चित कर पाए कि सैल्यूट-7 अपनी कक्षा में नीचे आ गया या नहीं। उन्होंने यह विश्वास किया कि सैल्यूट-7 अब भी कक्षा में था। उतरते समय यह निर्धारित स्थान से दूर गिरा। मीर के मामले में यद्यपि यह एक अलग बात है, क्यों कि यह आकार तथा भार में अन्य प्रकार के उदाहरणों से भिन्न है। मीर को पृथ्वी पर लाने की घटना को 1979 में अमेरिकी अंतरिक्ष यान स्काईलैब को पृथ्वी पर लाने से की जा सकती है जिसका भार 70 टन था। स्काईलैब ऑस्ट्रेलिया के बाहर समुद्र में गिरा। राडार प्रेक्षणों के अनुसार, स्काईलैब समूचा (बिना टुकड़ों में टूटे हुए) समुद्र में गिरा। ऐसा मीर अंतरिक्ष स्टेशन के साथ शायद इसलिए नहीं हुआ, क्यों कि मीर अंतरिक्ष स्टेशन माड्यूलों को जोड़कर बनाया गया था। इसी प्रकार सन 2000 में 14 टन की काम्पटन गामा किरण प्रेक्षणशाला अमेरिका के द्वारा पृथ्वी पर वापस लाई गई। अमेरिकी नियंत्रण केंद्र के अनुसार, यह प्रेक्षणशाला 80 कि.मी. की ऊँचाई पर जलने लगी (वायुमंडल के घर्षण के कारण) तथा 70 कि.मी. की ऊँचाई पर यह कई टुकड़ों में टूट गई।


रूस ने राहत की साँस ली


मीर अंतरिक्ष स्टेशन की पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी पर रूसी अंतरिक्ष यात्रियों ने अत्यधिक राहत की साँस ली। मीर अंतरिक्ष स्टेशन को बनानेवाली और प्रचालित रखनेवाली कंपनी एनर्जिया के अध्यक्ष यूरी सेमयोनोव के अनुसार, ”मीर को अंतरिक्ष की कक्षा से वापस लाने में कोई परेशानी नहीं हुई तथा सारा घटनाक्रम आशा के अनुरूप घटित हुआ।” रूसी अंतरिक्ष संस्था के प्रधान यूरी कोप्टेव के अनुसार, ”सारा प्रचालन बहुत अच्छे तरीके से संपन्न हुआ” और उन्होंने नियंत्रण कक्ष के सभी विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया। कोप्टेव के अनुसार, ”विशेषज्ञों ने किसी भाँति की भी ग़लती नहीं की तथा उनकी गणनाएँ और प्रचालन शुद्धता एक मिलीमीट तक की थी।”


एनर्जिया कंपनी के अनुसार, अंतरिक्ष स्टेशन मीर जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश के समय टुकड़ों में टूटना शुरू हुआ तो इसकी गति उस समय 17895 मील प्रति घंटे यानी आठ कि.मी. प्रति सेकंड थी। मीर स्टेशन के पृथ्वी पर गिरने के समय किसी आपातकालीन परिस्थिति के पैदा हो जाने की अवस्था से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान के देशों ने सुरक्षा के समुचित प्रबंध कर लिए थे।


स्रोत : http://www.abhivyakti-hindi.org/vigyan_varta/vigyan/2009/mir.htm

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वैभव पांडेय,94,Gallery,84,
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विज्ञान वैभव: विश्व का प्रथम स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन मीर –-
विश्व का प्रथम स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन मीर –-
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