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क्या भगवान है यदि है तो कहाँ--

By गुड्डन सिंह मिश्रा। इस सम्बन्ध में मेरा विचार है कि हम सब ईश्वर में विश्वास क्यों करते हैं? इसका मुख्य कारण यह है कि हम सबको पैदा होने के...

By गुड्डन सिंह मिश्रा।
इस सम्बन्ध में मेरा विचार है कि हम सब ईश्वर में विश्वास क्यों करते हैं? इसका मुख्य कारण यह है कि हम सबको पैदा होने के समय से ही हमारे चारो तरफ ऐसा वातावरण देखने को मिलता है कि सब के सब ईश्वर में विश्वास कर रहे हैं हम देखते है कि हमारी माँ,हमारे पिता ,हमारे भी,बहिन ,पड़ोसी सभी मंदिर/चर्च जाते हैं ,घर में भी ईश्वर की पूजा करते हैं सूर्यदेव को जल चढाते हैं ,जो हट्टे कट्टे बाबा “भगवान” के रूप में हमारे घर के दरवाजे पर  आते हैं उन्हें खाना,आटा ,पैसे दिए जाते हैं और आये दिन भगवान के रूप में महात्मा आते हैं पंडाल लगते हैं वहाँ प्रवचन सुनने जाते हैं वहाँ हम सब को बताया जाता है कि भगवान हैं और उन्होंने ही इस श्रष्टि का निर्माण किया है और सब कुछ उसके द्वारा ही किया जा रहा है .

और यह सब हम लोग देखते देखते और इसी घुट्टी को पिटे हुए बड़े हुए हैं इसीलिए हमारी यह धारणा बन गयी है कि ईश्वर होता है और वह ८४ करोड देवताओं के रूप में है.किसी ने देखा तो आज तक नहीं पर मानते सब आरहे हैं कि वह होता है जन्म लेता है ,अवतार लेता है लोगों के  जो विचार हमारे सामने आते हैं उनको विना सोच समझे ही हम मान् लेते हैं और धारण करते जाते हैं  दिमाग में पर्त दर पर्त  जमा होता जाता है और हमारी धरना बन जाती है जिसमें विवेक का कोई स्थान नहीं होता है .


में कहूँ कि क्या आपने ईश्वर देखा है? क्या कोई सबूत है ? इसका जवाब दिया जाता है कि देखा तो नहीं पर होता है. और है भी . एक नेताजी हैं उनको एक स्त्री ने कहा कि मेरा यह बेटा है इसके बाओलोजीकल पिता आप हैं आपने प्रेम किया ,कहा कि शादी कर लेंगे यह बच्चा पैदा हो गया पर आपने शादी आज तक नहीं की लोक लाज के कारण. इसको अपना बेटा स्वीकार करो. कह दिया कि यह  मेरा बेटा नहीं है क्या सबूत है? यहाँ सबूत माँगा जा रहा है जबकि जीवित स्त्री कह रही थी उस स्त्री ने कहा कि  डी एन ए टेस्ट करा लीजिए बोले मैं क्यों कराऊँ ,फिर कोर्ट के आदेश पर टेस्ट हुआ और वही नेताजी उस बच्चे के पिता घोषित किये गए और मानना पड़ा .कितनी अजीब विडम्बना है कि जिसका सबूत मिल रहा है उसको मानने के लिए तैयार नहीं हैं और जिसका कोई सबूत  नहींहै ,आज तक किसी को सबूत मिला नहीं है  उसको आँख मींच कर मानते आ रहे हैं.यही बात स्वर्ग और नर्क के बारे में लागू होती है .लोग कहते हैं कि स्वर्ग जाना हो तो ऐसे ऐसे अच्छे काम करो बरना नर्क में जाओगे.जिस स्थान को आज तककिसी ने देखा नहीं और जिसका कोई प्रमाण नहीं उसको सब मानते आ रहे हैं क्यों? क्योंकि हम सबको बचपन से यही घुट्टी पिलायी जाती रही है. हमारा जो वर्तमान है संसार है  जो दिखायी दे रहा है जो स्वयं में जीता जागता प्रमाण है उसको “माया” (अर्थात जिसका कोई अस्तित्वा ही नहीं) कहा जाता है और कहा जाता है कि यह मिथ्या है, छन भंगुर है इसको भूल जाओ और स्वर्ग जाने के लिए जो बातें बतायी गयीं हैं उनको मानो स्वर्ग जाओ.जबकि सच केवल यही है कि जो  पल,छन  हम जी रहे हैं वही सच है हम एक एक पल वह कार्य करें जिससे इंसानों,जानवरों,पर्यावरण की भलायी हो  हम यह तो करते नहीं हैं,करते हैं वह यह कि जिन माँ बाप को जीवन भर सुख न दे सके उनके मरने पर हम उनकी आत्मा की शान्ति के लिए ग़रीबों को नहीं बल्कि मोटे तगड़े लोगों को बढ़िया भोजन कराते हैं ,दान देते हैं.हम स्वर्ग पाने के लिए भूखे रहकर बरत करते हैं ,गंगा नहाने जाते हैं इसकी कोई रसीद नहीं मिलती है न् कोई सबूत हम मांगते हैं .


जब में लोगों को इतनी तन्मयता से पूजापाठ में लीं देखता हूँ तो मन में हमेशा एक सवाल उठता है कि “ईश्वर कहाँ है?अगर है तो छिपा क्यों है ,सामने क्यों नहीं आता है?”पौराणिक कथा के अनुसार द्रौपदी का चीरहरण होते समय कृष्ण भगवान उसकी रक्षा करने के लिए पधारे थे किन्तु आज जब हजारों लाखों छोटी छोटी बच्चियों  का ,स्त्रियों का बलात्कार होता है ,यों शोषण होता है तो ईश्वर इनकी रक्षा करने क्यों नहीं आता है?(क्या सभी पापी होती हैं?)............ईश्वर को हम रोज कहते हैं तुमहीं हो माता पिता  तुम्हीं हो तुम्हीं हो बंधू सखा तुम्हीं हो और माँ बाप के लिए सभी बच्चे बराबर प्रिय होते हैं तो फिर इनकी टेर क्यों नहीं सुनी जाती है जो द्रौपदी की सुनी गयी थी ? क्या बलात्कार होते समय कोई  बच्ची या औरत भगवान को याद नहीं करती है? सायद ही कोई ऐसी बच्ची या औरत हो जो यह न कहती हो “हे भगवान  मुझे बचा लो.


जब धर्म के नाम पर जब हिंदू ,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई  एक दूसरे को मरते काटते हैं तब ईश्वर कहाँ होता है?उनको पहले ही सद्बुद्धि क्यों नहीं देता है जबकि बे सब  तो उसी के नाम पर उसी के लिए लड़ रहे होते हैं. हम अपने सामने कितनों को धर्म और जाती के नाम पर मरते और मारते देखते हैं फिर भी हमारी आँखें नहीं खुलती हैं कि आज हम जिनको मार रहे हैं कल वही हमको मारेंगे (धर्म के नाम पर आज तक दुनियाँ में जितने लोग मरे/मारे गए हैं उतने आंधी ,तूफ़ान,महामारी, भूकंप आदि मैं कुल मिलाकर भी नहीं मरे हैं) बास्तव में इस मार काट के बीच में ईश्वर तो कहीं है ही नहीं और अगर है तो क्यों नहीं इन सबको विवेक /ज्ञान सद्बुद्धि देता है ? यह बात हमें क्यों समझ नहीं आती है कि जो हमें दिखाई ही नहीं देता है /काल्पनिक है और जिसके अस्तित्व के बारे में कुछ भी पता नहीं अर्थात भगवान के लिए हम लोग उनको मार रहे हैं जिनका अस्तित्व है,जो कि ज़िंदा हैं,जिक्नी तरफ अगर हम दोती का हाथ बाधाएं तो हो सकता है कि बे सारे गीले सिक्वे भुलाकर  हमें गले लगा लें . जब हम ईश्वर के नाम पर मारकाट कर सकते हैं तो ईश्वर के नाम पर एक क्यों नहीं हो सकते हैं?


एक तरफ हम कहते हैं कि ईश्वर सबके दिलों में बस्ता है और दूसरी तरफ हम सब थाल सजाये उसको मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारे और चर्च में ढूँढते फिरते हैं .अगर ईश्वर बास्तव में है और हमारे अंदर है तो क्यों उसके दर्शन के लिए जगह जगह बने और  पहाड़ों पर बने मंदिरों में, गुफाओं में उसे तलासते फिरते हैं?


  आज हम किसी इंसान पर प्रकृति का प्रकोप देखते हैं तो यही कहते हैं कि सब कर्मों का फल है यदि यह कर्मों का फल है तो उन छोटे बच्चों ने कौन से बुरे कर्म कर लिए जो सुनामी ,भूकंप आदि विपदाओं मैं मारे जाते है. दो दो चार साल के भी बच्चे मर जाते हैं उन्होंने कौन से पाप कर लिए? जब यह पूछा जाता है तो कह दिया जाता है कि इस जन्ममें नहीं किये तो पूर्व जन्म में किये होंगे पर किये जरूर होंगे. एक बस ४० बच्चों को लेकर स्कूल जा रही थी बस ड्राइवर की भूल से बस नदी में गिर गयी ड्राइवर सहित  ३९ बच्चे भी  मर गए केवल  एक को ही बचाया जा सका .क्या सभी ३९ बच्चे पापी थे? क्या ईश्वर इतना लाचार है जो कि किसी के बुरे कर्मों का फल उसी जन्म में नहीं दे पाता  है यह टी ऐसे ही हुआ  जैसे बिजनेस में एक साल के अंत का क्लोजिंग  बकाया अगली साल का ओपनिंग बेलेंस हो जाता है  उसी तरह ईश्वर के यहाँ है कि चलो तुम्हारे जीवन की अबाधि को तो बढ़ा पाना मेरे (ईश्वर के )बश  में नहीं है हाँ जो ये पाप  तुम्हारे बचे  रह गए हैं इनका फल अगले जनम में दूँगा. यह कैसा तरीका है कर्म के  परिणामों  को भुगतबाने का . कहते हैं ईश्वर बड़ा दयालु /न्यायकारी है .जब किसी बच्ची के साथ सामुहि बलात्कार या बलात्कार होता है तो उनमें कई लड़के/पुरुष  नेता/पैसेबाले होते हैं और सजा से बच जाते हैं और वह निर्दोष बच्ची या तो आत्महत्या कर लेती है या ओनर किल्लिंग में माँ बाप  भाई हत्या कर देते हैं या फिर जीवन भर आत्मग्लानी/अपराध बोध लिए जीती है यह कैसी दयालुता है कैसा न्याय है कि अपराधी तो खुले आम सर उठाये घूमता है क्योंकि पैसेवाला या नेता है और निर्दोष मर जाता है/ मार दिया जाता है या तिल तिल कर मरने को मजबूर होता है . कंस ,हिरण्याकश्यप,रावण  जैसे राक्षसों को मारने के लिए ईश्वर ने अवतार लिया था आज हजारों ऐसे राक्षस खुले आम घूम रहे हैं (गेंग रेप /आतंकबादी ) परन्तु इनको मारने के लिए कोई अवतार नहीं ले रहा है लगता है कि ईश्वर यह इन्तजार करता है कि जब तक गेंगरेप करने बाले सौ दो सौ लड़कियों की जिंदगी बर्बाद नहीं कर दे तब तक कुछ मत करो ,सद्दाम हुसेन ने हजारों को मारा तब मरा .जब आतंकबादी लालच देकर मासूम बच्चों  को आत्मघाती हम्लाबर बनाकर कुछ लोगों की जान लेने के लिए उस मासूम बच्चे को मज जाने देने के लिए दया नहीं करते हैं तो क्या ऊपर विथ ईश्वर यह सब नहीं देखता है? देखता है पर वही जवाब कि बच्चे ने पूर्व जन्म में बुरे कर्म किये होंगे.बात खत्म. पता नहीं ईश्वर और किस बुरी से बुरी स्थिति का इन्तजार कर रहा है जब वह अवतार लेने के लिए सोचेगा?  यह सब कुछ देख सुन कर भी क्या हम सबका दिल यह नही पुकार करता है कि आखिर ईश्वर कहाँ है? क्यों छिपा है? लगता है ईश्वर सिर्फ धंधेबाजों की दूकानों में मूर्तियों के रूप में, अच्छे अच्छे कलात्मक चित्रों के रूप में रक्खा है जो कि ऊँची ऊंची बोलियों में बिकता है या फिर मंदिर की मूर्तियों में है जहाँ उसका(ईश्वर का) स्तेमाल भक्तों से पैसा जमा करने ,करोड़ों के मुकुट /मालाएं एयर सैकड़ों /हजारों रुपयों के परसाद चढ़वाने में किया जाता है लगता है वह धर्म की दूकानदारी में धंधेबाजों का पार्टनर है ,   


                                     


सच ये है कि ईश्वर का अस्तित्वा वैसा नहीं है जैसा हम समझते हैं


 


हम मोबाइल की दूकान पर जाकर कहें कि भाई एक हजार रुपये रिचार्ज करदो वह अगर कह दे कि रिचार्ज कर दिया पर यह तो आप जो मोबाइल  स्वर्ग ले जाओगे उसमें पड़ गए आपको स्वर्ग में भी तो बात करनी होगी वहाँ अभी कोई रिचार्ज सेंटर नहीं है तो हम विगड जायेंगे और कहेंगे क्या सबूत कि वहाँ  ये एक हजार रुपये मिल ही जायेंगे? यहाँ तो अभी रिचार्ज कराओ अभी मोबाइल में मेसेज आ जाता है. देखा यहाँ भी सबूत चाहिए लेकिन जब श्राद्ध पक्ष में मोती मोती तोंद वालों को बढ़िया भोजन करते हैं और “तेरहवीं” कार्यक्रम में तो खाना,चारपाई ,कपडे,आभूषण और बे सब चीजें खुशी खुशी देकर पैर भी छूते हैं क्योंकि हमको बताया जाता है कि मृत व्यक्ति को जो जो वस्तुएं,खाना,पसंद था अगर इनको खिलाओगे तो मृत व्यक्ति की आत्मा प्राप्त कर लेगी और खुश हो जायेगी. इसमें हम दस बीस,पचास हजार रुपये खर्च कर देते हैं तब हमें सबूत की जरुरत नहीं होती है   


     घटना जो 19.6.12 को अखवार में छपी


19.6.12 को एक घटना छपी कि एक परिवार में दो ऐसी बच्चियाँ हैं जिनके सिर आपस में जुड़े हुए हैं जन्म के  समय से ही । कुछ बरसों तक माँ बाप ने मानसिक कष्ट उठाया और उनमे तथा दोनों बच्चियों में  हीनता की भावना आ गयी क्योंकि बहुत भारी खर्चे का ऑपरेशन करना उनके लिए संभव नहीं था ।किसी तरह बहुत बरसों  के बाद उन्होने ऑपरेशन कराया ।डाक्टरों ने सफलता पा ही ली। उनके सिर अलग अलग हो गए ।माँ बाप की खुशियों का कोई ठिकाना न था  ।अगर पैसों कि व्यवस्था न हो पाती तो माँ बाप एयर दोनों बेटियाँ जीवन भर मानसिक कष्ट उठाते रहते॥ यध्यपि माँ बाप मानसिक परेशानी से तो उबर गए लेकिन  जो पैसे  बेटियों के विवाह में काम आते बे खर्च हो गए  । यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या ईश्वर है ? कैसे?

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वैभव पांडेय,94,Gallery,84,
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विज्ञान वैभव: क्या भगवान है यदि है तो कहाँ--
क्या भगवान है यदि है तो कहाँ--
विज्ञान वैभव
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