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आधुनिक हवाई जहाज का इतिहास एवं कार्य विधि--

BY-- प्रशान्त तिवारी हवाई जहाज का आज तक का रोमांचक सफर बहुत जोखिम और हादसों को अपने आप में समेटे हुए है। अमेरिका के हटिंगटन स्थित यूनाइटेड ब...

BY--प्रशान्त तिवारी

हवाई जहाज का आज तक का रोमांचक सफर बहुत जोखिम और हादसों को अपने आप में समेटे हुए है। अमेरिका के हटिंगटन स्थित यूनाइटेड ब्रेदेन चर्च में बिशप के पद पर कार्यरत विल्वर और ओरविल के पिता ने बचपन में उन्हें एक खिलौना हेलीकॉप्टर दिया था जिसने दोनों भाइयों को असली का उड़न-यंत्र बनाने के लिए प्रेरित किया। 


यह खिलौना बांस, कार्क, कागज और रबर के छल्लों का बना था। कागज, रबर और बांस का बना हुआ यह हेलीकॉप्टर फ्रांस के एयरोनॉटिक विज्ञानी अल्फोंसे पेनाउड के एक अविष्कार पर आधारित था। दोनों में इस खिलौने को लेकर जबर्दस्त उत्सुकता थी। दोनों रात दिन इससे खेलते रहे। दोनों इससे तब तक खेलते रहे जब तब कि एक दिन यह टूट नहीं गया। 

इस खिलौने को उड़ता देखकर  विल्वर और ओरविल के मन में भी आकाश में उड़ने का विचार आया था। उन्होंने निश्चय किया कि वे भी एक ऐसा खिलौना बनाएंगे। इसके बाद वे दोनों एक के बाद एक कई मॉडल बनाने में जुट गए। अंतत: उन्होंने जो मॉडल बनाया, उसका आकार एक बड़ी पतंग सा था। इसमें ऊपर तख्ते लगे हुए थे और उन्हीं के सामने छोटे-छोटे दो पंखे भी लगे थे, जिन्हें तार से झुकाकर अपनी मर्जी से ऊपर या नीचे ले जाया जा सकता था। बाद में इसी यान में एक सीधी खड़ी पतवार भी लगायी गयी।विल्वर और ओरविल में केवल चार साल का अंतर था। जिस समय उन्हें हवाई जहाज बनाने का ख्याल आया। 

उस समय विल्वर सिर्फ 11 साल का था और ओरविल की उम्र थी 7 साल।  इसके बाद राइट भाइयों ने अपने विमान के लिए 12 हॉर्सपावर का एक डीजल इंजन बनाया और इसे वायुयान की निचली लाइन के दाहिने और निचले पंख पर फिट किया और बाईं ओर पायलट के बैठने की सीट बनाई। राइट बंधुओं के प्रयोग काफी लंबे समय तक चले। तब तक वे काफी बड़े हो गये थे और अपने विमानों की तरह उनमें भी परिपक्वता आ गयी थी। आखिर में 1903 में 17 दिसम्बर को उन्होंने अपने वायुयान का परीक्षण किया। 

पहली उड़ान ओरविल ने की। उसने अपना वायुयान 36 मीटर की ऊंचाई तक उड़ाया। इसी यान से दूसरी उड़ान विल्वर ने की। उसने हवा में लगभग 200 फुट की दूरी तय की। तीसरी उड़ान फिर ओरविल ने और चौथी और अन्तिम उड़ान फिर विल्वर ने की। उसने 850 फुट की दूरी लगभग 1 मिनट में तय की। यह इंजन वाले जहाज की पहली उड़ान थी। राइट बंधुओं को अपने सपनों को साकार करने में उनके परिवार से भी पूरी मदद मिली। लेखिका पामेला डंकन एडवर्डस ने अपनी किताब ‘द राइट ब्रदर्स’ में लिखा है कि विल्बर ने कहा, ‘हम खुशकिस्मत थे कि हमारा पालन पोषण ऐसे वातावरण में हुआ जहां बच्चों को उनकी बौद्धिक रूचियों और उत्सुकताओं की दिशा में काम करने की आजादी मिली हुई थी।’ 

उसके बाद नये-नये किस्म के वायुयान बनने लगे। पर सबके उड़ने का सिद्धांत एक ही है। हवाई जहाज का इंजन की वजह से नहीं बल्कि अपने पंख के आकार की वजह से उड़ पाना सम्भव हो पाता है। पंख की इस विशेष बनावट को एरोफाइल कहते हैं। इस एरोफाइल की विशेषता यह है कि पंख के ऊपर और नीचे से गुजरने वाली हवा को पीछे जाकर एक ही समय पर मिलने के लिये ऊपर से होकर जाने वाली हवा को नीचे से होकर जाने वाली हवा से तेज़ चलना पड़ता है. वायु की गति जितनी तेज़ होती है उसका दबाव उतना ही कम होता है। 

पंख के ऊपर वाले भाग में वायु का दाब, नीचे वाले भाग की तुलना में कम होगा, जिससे पंख ऊपर उठने को बाध्य होंगे. वायुदाब के अन्दर द्वारा उत्पन्न वह बल जिस के कारण वायुयान ऊपर उठने को मजबूर हो जाता है, उत्थापक बल कहलाता है। इंजन का काम तो होता है वायुयान की तेजी के साथ वायु के बीच से गुजारना ताकि उत्थापक बल द्वारा यह ऊपर उठाया जा सके। इसी बल को उत्पन्न करने के लिए हवा में उड़ने से पूर्व हवाई जहाज रनवे पर तेजी से भगाया जाता है।  एक निश्चित वेग पर उत्थापक बल का मान इतना अधिक हो जाता है कि वह वायुयान के भार से अधिक हो जाता है और वायुयान हवा में उड़ने लग जाता है। उत्थापक बल उत्पन्न करने के लिए वायु तेज गति से हवाई जहाज के पंख से गुजरनी चाहिए अतः हवाई जहाज अपनी पूरी उड़ान के दौरान तेज गति से उड़ता रहता है यहाँ तक कि हवाई अड्डे पर उतरते समय भी काफी तेज गति से रन वे को स्पर्श करता है। इसके लिए हवाई अड्डे पर रनवे का निर्माण किया जाता है। 

नौसेना में प्रयुक्त किये जाने वाले विमानवाहक पोत में भी लड़ाकू विमानों के लिए रनवे बनाया जाता है। यद्यपि पोत के रनवे की लम्बाई काफी कम होती है। यही कारण है कि इस रनवे पर विमान उतारना बहुत जोखिम भरा होता है। पायलट इस कार्य को बेहद सावधानी से करते हैं। हवाई जहाज, हेलीकाप्टर की तरह हवा में एक स्थान पर स्थिर नहीं रह सकता। 17 दिसंबर, 1903 को पहली बार पूर्ण नियंत्रित मानव हवाई उड़ान को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले ओरविल और विल्बर राइट, साइकिल की संरचना को ध्यान में रखकर अलग अलग कल पुर्जा जोड़कर हवाई जहाज का विकास करते रहे। 

उन्होंने कई बार हवा में उड़ने वाले ग्लाइडर बनाए और अंत में जाकर हवाई जहाज बनाने का उनका सपना सच हुआ। दोनों को मशीनी तकनीक की काफी अच्छी समझ थी जिससे उन्हें हेलीकॉप्टर के निर्माण में मदद मिली। यह कौशल उन्होंने प्रिंटिंग प्रेसों, साइकिलों, मोटरों और दूसरी मशीनों पर लगातार काम करते हुए पाया था। दोनों ने 1900 से 1903 तक लगातार ग्लाइडरों के साथ परीक्षण किया था। राइट बंधुओं ने हवाई जहाज के निर्माण में वर्षों मेहनत की थी। वर्तमान में यातायात को सुगम बनाने वाला हवाई जहाज जैसा यंत्र उनकी वर्षों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। 

हवाई जहाज के निर्माण में उन्होंने फ्लूड डायनामिक्स के सिद्धांतों का प्रयोग किया था। झा ने कहा, ‘राइट बंधुओं की कोशिश थी कि किस तरह इस यंत्र को गुरूत्वाकर्षण बल द्वारा नीचे खींचे जाने से बचाया जाए। इसके लिए उन्होंने बार-बार प्रयोग किए। हवाई जहाज का वजन बार-बार कम किया ताकि हवा इसे खींच ना ले जाए। उन्होंने इसके उड़ने की दिशा सही और संतुलित करने के लिए थ्री एक्सिस कंट्रोल थ्योरी का प्रयोग किया और अंत में सफल रहे।’  हवाई जहाज़ के बनने से पहले, कई लोग ऊंचे टावरों से, पहाड़ों से, दोनों हाथों में पंख लगाकर उड़ने की कोशिश में अपनी जान गंवा चुके थे। 

सौ-डेढ़ सौ साल पहले, इंसान की पक्षियों जैसी उड़ान भरने की चाहत से ये सफ़र शुरु हुआ था। राइट बंधुओं के विमान बहुत सुरक्षित नहीं कहे जा सकते थे। इनके विकास के लिए प्रयत्न करने वाले कई वैज्ञानिक हादसों के शिकार हुए और अपनी जान गंवा बैठे। इनमें सुधार होने और इनके सुरक्षित डिज़ाइन बनाने में कई वर्ष लग गए। कई साल तक ग्लाइडर बनाने और उड़ाने वाले वैज्ञानिक-इंजीनियर-डिज़ाइनर ओटो लिलिएंथल के उड़ने के विज्ञान को भली-भांति समझने के बावजूद 19वीं शताब्दी में उन्होंने एक प्रयोग के दौरान हादसे में अपनी जान गंवा दी। 

32 साल के चार्ल्स रोल्स की जुलाई, 1910 में बर्नमाउथ में तब मौत हुई जब उनका राइट फ्लाइर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। ये ब्रिटेन में होने वाली हवाई दुर्घटनाओं में पहली मौत थी। रोल्स रायस के इंजिन को डिज़ाइन करने वाले रॉय चैडविक की 1947 में तब मौत हो गई थी, जबकि मैंटेनेंस की चूक के चलते उनका विमान क्रैश हो गया। फास्ट जेट विमान की उड़ान के शुरुआती दौर में कोई टेस्ट पायलट हादसे के शिकार हुए।  1950 के दशक में महज़ एक साल के अंदर तीन बड़े हादसे हुए जब एकदम नई डे हैवीलैंड कॉमेट कंपनी के विमान हवा में ही टूट गए थे। इन हवाई जहाज़ों को ब्रितानी कंपनी बीओएसी (ब्रिटिश ओवरसीस एयरवेज़ कॉरपोरेशन) में 1952 में शामिल किया गया था। 

कॉमेट दुनिया का पहला जेट एयरलाइनर था। ये खूबसूरत विमान अंटलांटिक सागर को आसानी से पार कर लेते थे। लेकिन इसके निर्माण में इस्तेमाल किए गए मेटल में खामी थी। इसका असर ये हुआ कि 1953 से 1954 के बीच तीन विमान हवा में ही टूट गए। इसमें दो विमान तो रोम के एयरपोर्ट से उड़ान भरने के बाद भूमध्य सागर में दुर्घटनाग्रस्त हुए। तीसरा विमान सिंगापुर से लंदन की उड़ान के दौरान कोलकाता से दिल्ली के बीच दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इसके बाद कॉमेट फ्लाइट बंद कर दी गईं और ब्रिटिश जेट के उत्पादन को बड़ा झटका लगा। 

इसके बाद रॉयल एयरक्राफ्ट एस्टेबलिश्मेंट (आरएई) के निदेशक सर अरनॉल्ड हॉल की अगुवाई में इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की एक टीम ने मलबे के साथ प्रयोग करके ये पता लगाया कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? इस जांच में ये पता लगा जिस मेटल से विमान बनाए गए थे, वो बहुत ज्यादा दबाव झेलने के लायक नहीं था और विमान खिड़की एवं दरवाजों के पास क्षतिग्रस्त हो जाते थे। बाद में निर्माण की तकनीक में सुधार किया गया। खिड़कियों को वर्गाकार (जिसके कारण वो टूट गई थीं) से बदलकर गोलाकार किया गया। इससे विमान सुरक्षित हुए। इसके बाद विकसित हुए विमान जून, 2011 तक इस्तेमाल किए गए, जब कॉमेट की पहली उड़ान लगभग 60 साल पहले, 1949 में भरी गई थी। 

अमरीका के इंजीनियरों ने आरएई के नतीजों को अपने यहां इस्तेमाल किया और उसकी मदद से बोइंग और डगलस जैसे बेहद कामयाब विमान बनाए। इन विमानों ने लंबी दूरी की उड़ानों की दुनिया को ही बदल दिया। कॉमेट के विमान लंबी दूरी की उड़ानों के लिए बोइंग और डगलस की चुनौतियों का सामना नहीं कर पाए। ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय हवाई सेवा बीओएसी ने भी लंबी दूरी की उड़ानों के लिए बोइंग 707 का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। हवाई उड़ानों के लिए नई मुश्किलों का पता नए सिरे से जून, 1956 में तब लगा जब पहली बार एक व्यवसायिक उड़ान हादसे का शिकार हो गई। टीडब्ल्यूए सुपर कांस्टेलेशन और यूनाइटेड एयरलाइंस डीसी-7 के टकराने से हुए हादसे में सौ से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद नए और बेहतर एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम की बात शुरू हुई। इसके बाद 1958 में फेडरल एविएशन एजेंसी की शुरुआत हुई। इसे पूरी अमरीकी एयरस्पेस का अधिकार दे दिया गया,  इसमें सैन्य विमान भी शामिल थे, ताकि सभी उड़ानों का नक्शा और चार्ट बनाया जा सके। रेडियो ट्रांसपोडर्स ने जल्दी ही उड़ान भर रहे विमानों पर नज़र रखनी शुरू की। 1970 के आते आते जीपीएस की शुरुआत हुई। ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम के चलते हवाई उड़ानें और सुरक्षित हुईं। 

कुछ दूसरे हादसे भी हुए जिसके चलते कॉकपिट रिसोर्स मैनेजमेंट में सुधार कियागया। इसमें स्मोक डिटेक्टर्स, ऑटोमेटिक फायर एक्सीटिंग्यूर्स, विंड शियर डिटेक्टर्स, ट्रांसपोंडर्स और फ्लेम रेटडेंट मैटिरियल्स वैगरह का इस्तेमाल किया जाने लगा। राइट बंधुओं के अविष्कार को लेकर विवाद भी हुए थे, फ्रांस की एक कंपनी ने भी इस तरह का आविष्कार करने का दावा किया लेकिन 1908 में पूरी दुनिया ने राइट बंधुओं के आविष्कार को मान्यता दे दी। आज हम जिन विमानों में यात्रा करते हैं वे काफी सुरक्षित माने जाते हैं। इनका विकास अपनी धुन के पक्के और साहसी अनेकों लोगों के समर्पण और त्याग के बाद ही हो सका है जिनका आधुनिक विमानों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। 

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